Book Title: Suttanipato
Author(s): Jagdish Kashyap
Publisher: Uttam Bhikkhu
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१६]
सुत्तनिपातो
[११९
मनो चस्स सुपणिहितो (इति सातागिरो यक्खो) सब्बभूतेसु तादिनो। अथो इट्टे अनि? च संकप्पस्स वसीकता ॥३।। कच्चि अदिन्नं नादियति (इति हेमवतो यक्खो) कच्चि पाणेसु सञतो। कच्चि आरा पमादम्हा कच्चि झानं न रिञ्चति ॥४॥ न सो अदिन्नं आदियति (इति सातागिरो यक्खो) अथो पाणेसु सञतो। अथो आरा पमादम्हा बुद्धो झानं न रिञ्चति ।।५।। कच्चि मुसा न भणति (इति हेमवतो यक्खो) कच्चि न खीणव्य' प्पथो। कच्चि वेभूतियं नाह कच्चि सम्फ न भासति ।।६।। मुसा च सो न भणति (इति सातागिरो यक्खो) अथो न खीणव्यप्पथो। अथो वेभूतियं नाह मन्ता अत्थं सो भासति ॥७॥ कच्चि न रज्जति कामेसु (इति हेमवतो यक्खो) कच्चि चित्तं अनाविलं । कच्चि मोहं अतिक्कन्तो कच्चि धम्मेसु चक्खुमा ॥८॥ न सो रज्जति कामेसु (इति सातागिरो यक्खो) अथो चित्तं अनाविलं। सब्बं मोहं अतिक्कन्तो बुद्धो धम्मेसु चक्खुमा ।।९।। कच्चि विज्जाय संपन्नो (इति हेमवतो यक्खो) कच्चि संसुद्धचारणो। कच्चिऽस्स आसवा खीणा कच्चि नत्थि पुनब्भवो ॥१०॥ विज्जाय चेवर संपन्नो (इति सातागिरो यक्खो) अथो संसुद्धचारणो। सब्बस्स आसवा खीणा नत्थि तस्स पुनब्भवो ॥१।। संपन्नं मुनिनो चित्तं कम्मना व्यप्पथेन च । विज्जाचरणसंपन्नं धम्मतो नं पसंससि ॥११ (अ) ।। संपन्नं मुनिनो चित्तं कम्मना व्यप्पथेन च।। विज्जाचरणसंपन्नं धम्मतो अनुमोदसि ॥११ (आ)।। संपन्नं मुनिनो चित्तं कम्मना व्यप्पथेन च। विज्जाचरणसंपन्नं हन्द पस्साम गोतमं ॥१२॥ एणिजंघं किसं धीरं अप्पाहारं अलोलुपं । मुनि वनस्मि झायन्तं एहि पस्साम गोतमं ॥१३॥ सीहंऽवेकचरं नागं कामेसु अनपेक्खिनं । उपसंकम्म पुच्छाम मच्चपासा पमोचनं ।।१४॥ अक्खातारं पवत्तारं सब्बधम्मान पारगुं । बुद्धं वेरभयातीतं मयं पुच्छाम गोतमं ।।१५।।
१ B. 'नाखीणव्यप्पथो' इत्यपि.
२R. विज्जायमेव.
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