________________ 30 ] - उनकी मुक्तिमार्ग बताने की शैली अनूठी और अद्भुत है / उनका तत्त्वप्रतिपादन सदा स्याद्वाद-अनेकान्तवाद की मुद्रा से.अंकित है / मन, वचन और काया के निग्रह में वे बेजोड़ हैं / सूर्य से भी अधिक तेजस्वी और चन्द्रमा से भी अधिक सौम्य और शीतल हैं / सागर से भी अधिक गम्भीर हैं। मेरु के समान अडिग और अचल हैं / अनुपम रूप के स्वामी हैं। ऐसे अनेकानेक विशेषणों से शोभित, सर्वगुणसम्पन्न अरिहंत ही परमोपास्य हैं और इसीलिये वे स्तुति के पात्र हैं। - इसी प्रसङ्ग में एक प्रश्न और किया जा सकता है कि 'स्तुति करने से क्या लाभ मिलता है ?' इसका उत्तर इस प्रकार है - __सर्वगुणसम्पन्न अरिहंतों की स्तुति करने से मुक्ति के बीजरूप तथा प्रात्मिक-विकास के सोपानरूप सम्यग्दर्शन' की विशुद्धि होती ___ तथा स्तुति करते समय यदि भगवान् हृदय-मन्दिर के सिंहासन पर विराजमान हों, तो उससे क्लिष्ट कर्म का नाश होता है। उत्तराध्ययनसूत्र में एक स्थान पर देवों के स्तव-स्तुति-रूप भावमङ्गल के द्वारा जोव किस लाभ को प्राप्त करता है ? ऐसा एक प्रश्न हुआ है। वहाँ उत्तर में भगवान् ने बताया है कि-स्तव अथवा स्तुतिरूप भावमङ्गल के द्वारा जीव ज्ञानबोधि, दर्शनबोघि और चारित्रबोधि 1- (प्र०) चउवीसत्थएणं भत्ते ! किं जणयई ? (उ०) चउवीसत्थएणं दंसण-विसोहि जणयई // 6 // (उत्तरा०) 2- हृदि स्थिते च भगवति क्लिष्टकर्मविगमः // (धर्मबिन्दु') 3- (प्र०) 'थय थुइ मङ्गलेणं भंते ! जीवे किं जणयइ ? (उ०) नाणदंसणचारित्तबोहिलाभं संजणयइ, नाणदंसंणचारित्तबोहिसंपन्नेणं जीवे अन्तकिरियं कप्पविमाणोववत्तियं पाराहलं पाराहेंइ // 14 // // 1 क जणयइ ?