________________ [ 35 कर जो सहयोग दिया है, तदर्थ वे सचमुच अभिनन्दन के अधिकारी ___ उपाध्याय जी के द्वारा विरचित 'काव्यप्रकाश' की टीका का हिन्दी अनुवाद सहित मुद्रण कार्य, प्रूफसंशोधन आदि भी वे ही बड़ी लगन से कर रहे हैं / कुछ महीनों में वह कृति भी प्रकाशित हो जाएगी। उपाध्यायजी के ग्रन्थों का वर्षों से अपूर्ण पड़ा हुआ कार्य मेरे धर्मस्नेही-धर्मबन्धु श्री चित्तरंजन डी० शाह तथा धर्मात्मा सरला वहिन ने 'माउण्ट यूनिक' में स्थित उनके अनुज बन्धु हेमन्तभाई के स्थान की हमें सुविधा दी और बाहर के किसी भी व्यक्ति के आने पर कड़ा प्रतिबन्ध रखकर भू-गर्भ-वास के समान ही मैं वहाँ रहा। नीरव शान्ति तथा दिन के दस-दस, बारह-बारह घण्टे तक कार्य करके उपाध्यायजी की रचनात्रों की प्रेसकापियाँ संशोधन के लिए जो अपूर्ण थीं तथा कुछ को अन्तिम रूप देना था उन सभी को व्यवस्थित रूप दिया। इस 'स्तोत्रावली' का अन्तिम व्यवस्थापन भी माउण्ट यूनिक स्थान में ही किया गया / दस वर्ष का कार्य जो प्रख्यात स्थानों में मुझ से सम्पन्न नहीं हो सका था उसे प्रस्तुत स्थान में चार-पांच मास में पूर्ण कर सका इस सम्बन्ध में विशेष उल्लेख मैं प्रकाशित होनेवाले अन्य ग्रन्थ के निवेदन में करना चाहता हूँ। अभी तो मैं अपने इन उपर्यक्त भक्तिशील, धर्मात्मा, सुश्राविका-सरला बहन, कोकिला बहन, श्री विरलभाई तथा घर के शिरश्छत्र धर्मात्मा सुश्रावक श्री दामोदर भाई और उनकी धर्मपत्नी समाजसेविका धर्मात्मा स्व० श्री रम्भा बहन आदि कुटुम्ब परिवार का बहुत ही आभारी हूँ। ये