________________ 8 ] व्यक्ति की तुला-समानता को प्राप्त हो रही है। अर्थात् जिस प्रकार पृथ्वी पर रहने वाला स्वर्गस्थ वृक्षों के पुष्प नहीं प्राप्त कर सकता वंसे ही मेरी जिह्वा भी आपके गुणों की गणना में असमर्थ है // 2 // विश्वविश्वविभुतां निमृतं (तां) यः, शङ्कते परसुरेषु तवेव / तस्य हन्त ! खलता ख-लतायां, पद्मसौरभमिवानुमिनोति // 3 // हे देव ! जो व्यक्ति आपके समान ही अन्य देवताओं में समस्त विश्व के स्वामित्व की ऐकान्तिक 'शङ्का करता है, उसकी खलतादुर्जनता निश्चय ही आकाश-लता में कमल की सुगन्धि का अनुमान करती है। अर्थात् जिस प्रकार आकाश-लता में कमल की उत्पत्ति और उसकी सुगन्धि की कल्पना उपहास मात्र है उसी प्रकार अन्य देवताओं में आपके समान विश्वस्वामित्व की कल्पना भी उपहास मात्र है / / 3 // - यः परं परमदेव ! विमूढस्त्वत्समानमनुमित्सति तर्कः। भास्करत्वमनुमाय पतङ्ग, सूरमेव न करोति कुतोऽसौ // 4 // हे परमदेव ! जो विमूढ तर्क द्वारा किसी अन्य देव को आपके समान मानने का अनुमान करना चाहता है, वह सूर्य का अनुमान करके पतंगे को ही सूर्य क्यों नहीं बना देता है ? अर्थात् जैसे पतंगा सूर्य नहीं बन सकता वैसे ही अन्य देव भी आपकी समानता नहीं कर सकते / / 4 // देवदेव ! वचनं यदवोचः, सप्तभङ्गमपि निर्गतभङ्गम् / तन्यते ननु मनः श्रमरणानामस्तमोहमपि तेन समोहम् // 5 // है देवदेव ! आपने जो सप्तभङ्ग-सात खण्डों से युक्त होते हुए भी अभङ्ग-निर्भीक, पराजय-रहित और परिपूर्ण वचन कहा है, उससे