________________ 252 ] मनः सरोवरेऽस्माकं पाश्र्वो नीलोत्पलायताम् / यद्धैर्य-सख्यतो मेरुरुच्चमूर्धानमादधे // 16 // हमारे मनरूपी सरोवर में वे भगवान् पार्श्वनाथ नीलकमल के समान विकसित हों। जिनकी धीरता से मित्रता प्राप्त करके सुमेरुपर्वत अपने मस्तक को ऊँचा किया हुआ है // 16 // मच्चित्तनन्दने पार्बः कल्पद्रुरिव नन्दतु / हतं सप्तजगद्ध्वान्तं यदीयैः सप्तभिः फणैः // 17 // मेरे चित्तरूपी नन्दन वन में वे भगवान् पार्श्वनाथ कल्पवृक्ष के समान फलते-फूलते रहें जिनके (मस्तकपर सुशोभित धरणेन्द्र सर्पराज). के सात फणों से सातों लोकों का अन्धकार नष्ट हो गया है / / 17 / / वन्दारु-सुरकोटीररत्नांशु-स्नपितक्रमः / नेदीयसी जगद्वेदी कुर्यात् पावः शिवश्रियम् / / 18 // वन्दनशील इन्द्रादि देवताओं के मुकूटों में जटित रत्नों की किरणों से जिनके चरण देदीप्यमान हो रहे हैं ऐसे सर्वज्ञ प्रभु पार्श्वनाथ हमें मोक्षलक्ष्मी प्राप्त करायें // 18 // यः करोत्येव पापानां कलावपि बलात्ययम् / महानन्दाय तं श्रीमत्पाश्र्वं वन्दामहे वयम् // 16 // . इस कलियुग में भी जो पापों के बल को निश्चित रूप से क्षीण करते हैं, उन भगवान् श्रीपार्श्वनाथ को आनन्द-मोक्ष की प्राप्ति के लिये हम वन्दन करते हैं // 16 //