Book Title: Stotravali
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti

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Page 362
________________ [ 266 और यहां से पण्डित जसविजयजी, सत्यविजयजी गरिण, भीमदेवजी गणि, हर्ष विजयजी गणि, हेमविजयजी गरिण, लक्ष्मीविजयजी गणि, वृद्धिविजय जी गरिण तथा चन्द्रविजयजी गणि आप के पूज्य श्री चरणों को भावपूर्वक वन्दन करते हैं और सभी को प्रणाम करते हैं। अतः यह सब आप अपने हृदय में (हमारा) स्मरण बनाये रखें। ___ यहाँ. हम (मुझ) से प्रज्ञान के कारण उत्पन्न यदि कोई स्खलना उत्पन्न हुई हो, तो उसका आप अपनी प्रदीप्त ज्ञानरूपी अग्नि में हवन कर दें, क्योंकि ज्ञान में अद्वैतनय -एक नय दृष्टिवालों को सम्पूर्ण जगत् का ज्ञान दिखलाई देता है / / 7 / / ज्ञानक्रियासमुल्लसदनुभवदीपोत्सवाय भवतु सदा। श्रीपूज्यचरणभक्त्या लिखितो दीपोत्सवे लेखः // 8 // - आप श्रीपूज्यों के चरणों की भक्तिपूर्वक "दीपावली के पर्व पर लिखा गया यह लेख ज्ञान और क्रिया से उल्लसित होता हुआ अनुभवरूपी दीप के उत्सब पूर्णप्रकाश के लिये हो // 8 // [अनुष्टुप्] हृद्यस्तात्कालिकः पद्यः स्तवः परिणतो ह्ययम् / . साक्ष्येव केवलं तस्मिन् ज्ञानात्माऽस्मीति मङ्गलम् // 6 // यह तात्कालिक अर्थात् अनायास निर्मित पद्यों से स्तोत्र की रचना हुई है। इसमें केवल मेरा ज्ञानात्मा ही साक्षी है ऐसा मैं मानता हूँ। यह मङ्गलकारी हो // 6 // .

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