Book Title: Stotravali
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti

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Page 383
________________ 260 ] ___ भगवान् श्रीमहावीर देव की २५००वों निर्वाण शताब्दी के निमित्त से जैनों के घरों में जैनत्व टिका रहे, एतदर्थ प्रेरणात्मक, गृहोपयोगी, धार्मिक तथा दर्शनीय सामग्री तैयार हो, ऐसी अनेक व्यक्तियों की तैयार इच्छा होने से इस दिशा में भी वे प्रयत्नशील हैं। धार्मिक यन्त्र-सामग्री मुनिजी ने श्रेष्ठ और सुदृढ पद्धति पूर्वक उत्तम प्रकार के संशोधित सिद्धचक्र तथा ऋषिमण्डल-यन्त्रों की विरंगी, एकरंगी मुद्रित प्रतियाँ सेनेवालों की शक्ति और सुविधा को ध्यान में रखकर विविध आकारों में विविध रूप में तैयार करवाई हैं तथा जैनसंघ को आराधना की सुन्दर और मनोऽनुकूल कृतियाँ दी हैं / ये यन्त्र कागज पर, वस्त्र पर, ताम्र, एल्युमीनियम, सुवर्ण तथा चाँदी आदि धातुओं पर मीनाकारी से तैयार करवाए हैं / ये दोनों यन्त्र प्रायः तीस हजार की संख्या में तैयार हुए हैं। . पूज्य मुनिजी के पास अन्य अर्वाचीन कला-संग्रह के साथ ही विशिष्ट प्रकार का प्राचीन संग्रह भी है। ___इस संग्रह को दर्शकगण देखकर प्रेरणा प्राप्त करें ऐसे एक संग्रहालय (म्यूजियम) की नितान्त आवश्यकता है। जैनसंघ इस दिशा में गम्भीरतापूर्वक सक्रियता से विचार करे यह अत्यावश्यक हो गया है / दानवीर, ट्रस्ट आदि इस दिशा में आगे आएँ, यही कामना हैं। प्रकाशन समिति

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