Book Title: Stotravali
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti

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Page 359
________________ 266 ] अपने लावण्य से पवित्र है तथा वाणी मेघ की गर्जना के समान प्रभाव.शाली है उनकी अन्य कौन-सी ऐसी बात है कि जो आश्चर्यकारी न हो ? // 16 // युक्तरूपमिदं यस्मिन् ज्ञानाद्वैतावलम्बिनि। .. ख्यातिस्फातिमनिर्वाच्यां गाहन्ते निखिला गुणाः // 20 // ज्ञान के सम्बन्ध में अद्वैत का आलम्बन रखनेवाले जिन गुरुदेव में समस्त गुण उचित अनिर्वचनीय ख्याति की विस्तृति में लीन हो जाते हैं, यह उचित ही है // 10 // यस्य ध्यानानुरूप्येण ध्येयता विदुषामभूत् / व्यक्ता सेयं समापत्तिः पातञ्जलमताश्रिता // 21 // जिस गुरु के ध्यान की अनुरूपता से विद्वानों की 'ध्येयता' हुई वही महर्षि पतञ्जलि के मत से 'समापत्ति' है // 21 // यस्याप्रतिहतेच्छस्य क्षमाकर्तृत्वहेतुतः / ईश्वरत्वं न करिष्टं योगवैशेषिकैरिव // 22 // योग और वैशेषिक दर्शनों के अनुयायी जैसे ईश्वर को अप्रतिहत इच्छावाला तथा क्षमा आदि के कर्तृत्वरूप का कारण मानते हैं उसी तरह गुरुदेव की इच्छा अप्रतिहत होने से तथा निरन्तर क्षमाशील होने से उनके ईश्वरत्व को कौन स्वीकार नहीं करता? अपितु सभी स्वीकार करते हैं // 22 // यन्मनोवैभवं ब्रूते मीमांसामांसलो न कः / स्वतन्त्रां प्रकृति यस्य सांख्यः को नाभिमन्यते // 23 // मीमांसक मन के वैभव को स्वीकार करते हैं तो ऐसा कौनसा

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