________________ .132] एकमात्र क्षणिकता का पक्ष युक्तिसंगत नहीं है। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि नैयायिक का एकान्तस्थिरतापक्ष न्याय्य है, क्योकि एकान्तवाद ने जिनके हृदय पर अधिकार कर लिया है ऐसे लोग आप के अनुशासन का उल्लंघन कर अच्छी प्रकार से परीक्षा किये बिना ही कुछ अपूर्ण एवं अनिश्चित बात कहा करते हैं / / 13 / / काले च दिश्यपि यदि स्वगुणेविरोधो, ' बाझो न कोऽपि हि तदा व्यवतिष्ठतेऽर्थः / सौत्रान्तिको व्यवहरेत् कथमित्थमुच्चै न त्वन्मतQहमहो ! वृणुते जयश्रीः // 14 // कालभेद तथा दिशाभेद से तत्कार्यकरण और तत्कार्याकरण ऐसे जिन गुणों-धर्मों का एक व्यक्ति में सहभाव प्राप्त होता है उनका भी परस्पर विरोध-असहभाव मानकर यदि उन्हें अपने आश्रयों का भेदक माना जाएगा तो किसी भी बाह्यवस्तु की सिद्धि नहीं होगी। इस स्थिति में बाह्यवस्तु की सत्ता के आधार पर सौत्रान्तिक कार्यकारणभाव आदि जिन व्यवहारों को उच्चस्वर से स्वीकार करता है उनकी उपपत्ति नहीं होगी। इसलिए हे भगवन् ! यह बड़े आश्चर्य की बात है, कि सूक्ष्म दृष्टि से वस्तुतत्त्व का विचार करने में सिद्धहस्त सौत्रान्तिक का भी विजयश्री वरण नहीं करती, क्योंकि आपके सिद्धान्त का विरोध करने के कारण वस्तुस्वरूप का यथार्थ-वर्णन करने में यह उसे अयोग्य समझती है // 14 // तस्य त्वदागममृते शुचियोग ! योगाचारागमं प्रविशतोऽपि न साध्यसिद्धिः। . तत्रापि हेतुफलभावमते प्रसङ्गा- .. भङ्गात् तदिष्टिविरहे स्थिरबाह्यसिद्धेः // 15 //