________________ [ 211 का नाश सच्चरित्र से हो सकता है तो उसी प्रकार अन्य सञ्चित कर्मों का भी नाश होने में कोई बाधा न होने से उनके नाशार्थ केवलज्ञानी में उन असंख्य कर्मों का भोग मानने की कोई आवश्यकता नहीं है, अतः यही बात उचित प्रतीत होती है कि सउिचत कर्मों के नाशार्थ केवलज्ञानी के लिये भी सच्चरित्र का पालन आवश्यक है। ___इस पर यदि यह शंका उठाई जाय कि 'अदृष्टात्मक पूर्व कर्मों का नाश यदि कभी तत्त्वज्ञान से, कभी सच्चरित्रपालन से और कभी भोग से माना जाएगा तो व्यभिचार होगा, अतः पूर्वकर्मनाश के प्रति एकमात्र भोग को ही कारण मानना चाहिये' तो यह उचित नहीं है, क्योंकि नाश्य और नाशक में वैजत्य की कल्पना कर विजातीय अदृष्ट के नाश के प्रति विजातीय सच्चरित्र, विजातीय अदृष्ट के नाश के प्रति विजातीय तत्त्वज्ञान और विजातीय अदृष्टनाश के प्रति विजातीय भोग को कारण मानने से व्यभिचार की प्रसक्ति का परिहार सुकर हो जाता है। . यदि यह प्रश्न उठाया जाय कि 'सच्चरित्र से पूर्वकर्मों का नाश तब तक नहीं होगा जब तक उससे तत्त्वज्ञान की उत्पत्ति न हो जाय, अतः तत्त्वज्ञान ही कर्मनाश का कारण है सच्चरित्र तो तत्त्वज्ञान को पैदा करने से उपक्षीण होकर कर्मनाश के प्रति अन्यथासिद्ध हो जाता है तो यह ठीक नहीं है क्योंकि कर्मनाश को उत्पन्न करने में तत्त्वज्ञान सच्चरित्र का व्यापार है और व्यापार से व्यापारी कभी अन्यथासिद्ध नहीं होता यह सर्वसम्मत नय है / अतः व्यापारभूत तत्त्वज्ञान व्यापारी सच्चरित्र को. कर्मनाश के प्रति अन्यथासिद्ध नहीं बना सकता। इस प्रकार उपर्युक्त युक्तियों से यही सिद्ध होता है कि तत्त्वज्ञान और सच्चरित्र दोनों मोक्ष के परस्परसापेक्ष कारण हैं / / 7 / / ज्ञानं क्रियेव विरुणद्धि ससंवरांशं, कर्म क्षिणोति च तपोंऽशमनुप्रविश्य /