Book Title: Stotravali
Author(s): Yashovijay
Publisher: Yashobharati Jain Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 337
________________ 244 ] ये किलापोहशक्ति सुगतसूनवो, जातिशक्ति च मीमांसका ये / संगिरन्ते गिरं ते यदीयां नयद्वैतपूतां प्रसह्य श्रयन्ते // श्रीविजय० 3 // कारणं प्रकृतिरङ्गीकृता कापिलः, कापि नैवाऽऽत्मनः काऽपि शक्तिः। बन्धमोक्षव्यवस्था तदा दुर्घटे, त्यत्र जागति यत्प्रौढशक्तिः // श्रीविजय० 4 // .. शाद्विकाः स्फोटसंसाधने तत्परा, ब्रह्मसिद्धौ च वेदान्तनिष्ठाः / सम्मति-प्रोक्तसंङ्ग्रहरहस्यान्तरे, यस्य वाचा जितास्ते निविष्टाः // श्रीविजय० 5 // ध्रौव्यमुत्पत्तिविध्वंसकिर्मीरितं, द्रव्यपर्यायपरिणतिविशुद्धम् / विनसायोगसङ्घात-भेदाहितं, स्वसमयस्थापितं येन बुद्धम् // श्रीविजय० 6 // इति नुतः श्रीविजयप्रभो भक्तितस्तर्कयुक्त्या मया गच्छनेता। श्रीयशोविजयसम्पत्करः कृतधियामस्तु विघ्नापहः शत्रुजेता // श्रीविजय० 7 //

Loading...

Page Navigation
1 ... 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384