________________ 186 ] द्रव्यत्व की सिद्धि मानी जाएगी तो अतीन्द्रिय द्रव्यों में उसकी अनुगत प्रतीति न होने से उनमें द्रव्यत्व का अभाव होगा। अनुगत व्यवहार से भी द्रव्यत्व जाति की सिद्धि नहीं मानी जा सकती क्योंकि द्रव्य के अनुगत व्यवहार में वादियों का ऐकमत्य नहीं है। कार्यकारणभावद्वारा भी द्रव्यत्व की सिद्धि नहीं मानी जा सकती क्योंकि समवाय सम्बन्ध से जन्यभाव के प्रति तादात्म्य सम्बन्ध से द्रव्य कारण है। इस प्रकार का कार्यकारणभाव निष्प्रयोजन होने से अमान्य है। इस सन्दर्भ में यह कहना कि अद्रव्य में भावकार्य की उत्पत्ति का परिहार करने के लिए उक्त कार्यकारणभाव मानना आवश्यक है, ठीक नहीं है, क्योंकि कार्य का जन्म उसी वस्तु में होता है जिसमें असत्कार्यवादी के अनुसार कार्य का प्रागभाव होता है या सत्कार्यवादी अथवा सदसत्कार्यवादी के अनुसार कार्य का तादात्म्य होता है। अद्रव्य में किसी कार्य का प्रागभाव या तादात्म्य नहीं होता अतः उक्त कार्यकारणभाव के बिना भी अद्रव्य में कार्य की उत्पत्ति की आपत्ति नहीं हो सकती। फलतः द्रव्यत्व जाति की सिद्धि में कोई प्रमाण न होने से उसके सम्बन्ध में किसी पदार्थ को अद्रव्य नहीं कहा जा सकता। निष्कर्ष यह है कि परिणामी कारण होना ही द्रव्य होने की पहचान है और परिणामी कारण उक्त रीति से एकान्ततः द्रव्यरूप नहीं हो सकता / अतः प्रात्मा भी परिणामी कारण होने से द्रव्य तो है पर केवल द्रव्य ही नहीं है अपितु द्रव्य और पर्याय उभयात्मक है / / 63 / / नाशोभवस्थितिभिरेव समाहृताभिद्रव्यत्वबुद्धिरिति सम्यगदीदृशस्त्वम्। .. एकान्तबुद्धयधिगते खलु तद्विधानमात्मानि वस्तुनि विवेचक-लक्षणार्थः // 64 //