________________ / 78] के दिन बीसा श्रीमाली जाति के धर्म-परायण सुश्रावक 'श्री नाथालाल वीरचन्द शाह' के यहाँ पुण्यवती 'राधिका बहिन' की कोख से आपका जन्म हुआ। आपका नाम 'जीवनलाल' रखा गया। आपके तीन बड़े भाई और दो बड़ी बहिनें थीं। आपके जन्म से पूर्व ही पिता परलोकवासी हो गए थे / पाँच वर्ष की आयु में माता का भी स्वर्गवास हो गया। इस प्रकार बाल्यावस्था में माता-पिता की छत्रछाया उठ गई थी, किन्तु ज्येष्ठ बन्धु नगीन भाई ने बड़ी ही ममता से आपका लालन-पालन किया, अतः मातापिता के प्रभाव का अनुभव नहीं हुआ। * विद्याभ्यास तथा प्रतिभा-विकास आप पाँच वर्ष की आयु में विद्यालय में प्रविष्ट हुए और धार्मिक पाठशाला में भी जाने लगे। नौ-दस वर्ष की वय में संगीत-कला के प्रति मुख्यरूपेण आकर्षण होने के कारण सरकारी शाला और जैनसंघ की ओर से चल रही संगीत-शाला में प्रविष्ट हुए तथा प्रायः 6-7 वर्ष तक संगीत की अनवरत शिक्षा प्राप्त करके संगीतविद्या में प्रवीण बने / आपकी ग्रहणधारण शक्ति उत्तम होने से दोनों प्रकार के अभ्यास में आपने प्रगति की। सुप्रसिद्ध भारतरत्न फैयाजखान के भानेज श्री गुलाम रसूल आपके संगीत-गुरु थे। आपका कण्ठ बहुत ही मधुर था और गाने की पद्धति भी बहुत अच्छी थी, अतः आपने संगीतगुरु का अपूर्व प्रेम सम्पादित किया था। जैनधर्म में पूजात्रों को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। इन पूजामों में 'सित्तर,भेदी पूजा' उसके विभिन्न 35 राग-रागिनियों के ज्ञान के साथ आपने कण्ठस्थ कर ली तथा प्रसिद्ध-प्रसिद्ध समस्त पूजाओं की गानपद्धति भी सुन्दर राग-रागिनी तथा देशी-पद्धतियों में सीख ली और