Book Title: Sramana 2011 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi
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भारतीय चिन्तन में मोक्ष तत्त्व : एक समीक्षा : ७ तत्त्वसंग्रहपंजिका, आचार्य कमलशील, पृ० १०४ सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्राणि मोक्षमार्गः । तत्त्वार्थसूत्र, १.१ तथा ९.३९
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१०.
द्रष्टव्य, दीघनिकाय हिन्दी (अनुवाद), पृ० २८-२९ न्यायसूत्र ४.२.३८-४८, वेदान्तसार, पृ० ४७-५० देखें, टि० ३ बन्धहेत्त्वभाव-निर्जराभ्यां कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः। अप्पणो वसहिं वए। उत्तराध्ययन, १४.४८ आत्मलाभं विदुर्मोक्ष जीवस्यान्तर्मलक्षयात् । नाभावो नाप्यचैतन्यं न चैतन्यमनर्थकम् ।। सिद्धि-विनिश्चय, पृ० ३८४ तदनन्तरमूर्ध्वं गच्छत्यालोकान्तात् ॥ तत्त्वार्थसूत्र, १०.५ पूर्वप्रयोगादसङ्गत्त्वाद्वन्धच्छेदात्तथागतिपरिणामाच्च। तत्त्वार्थसूत्र, १०.६ आविद्धकुलालचक्रवद् व्यपगतलेपालाम्बुवदेरण्डवीजवदग्निशिखावच्च। तत्त्वार्थसूत्र, १०.७ धर्मास्तिकायाभावात् । तत्त्वार्थसूत्र, १०.८ क्षेत्र-काल-गति-लिङ्ग-तीर्थ-चारित्र-प्रत्येकबुद्ध-बोधित-ज्ञानावगाहनान्तरसंख्याल्प-बहुत्वत: साध्याः। तत्त्वार्थसूत्र, १०.९ साक्षात्कारे सुखादीनां कारणं मन उच्यते। भाषा-परिच्छेद, का० ८५ यदा सर्वे विमुच्यन्ते कामा ह्यस्य ह्यदि स्थिताः । तदा मोऽमृतो भवत्यत्र ब्रह्म समश्नुते ।। कठोपनिषद्, २.३.१४ सम्मत्ताणाणदंसण-वीरिय-सुहुमं तहेव अवगहणं। अगुरुलघुमव्वावाहं अट्ठगुणा होति सिद्धाणं ॥लघु सिद्ध-भक्ति, ८ अट्ठविहकम्मवियडा सीदीभूदा णिरंजणा णिच्चा अट्ठगुण कयकिच्चा लोयग्गणिवासिणो सिद्धा ।।गो०जी०, ६८ स्वभावप्रतिघाताभावहेतुकं हि सौख्यम् । प्र०सा, त०प्र०, ६१ कर्माष्टकं विपक्षि स्यात् सुखस्यैक-गुणस्य च ।

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