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कहकोसु (कथाकोश) में वर्णित राजनैतिक चिंतन
डॉ. (श्रीमती) दर्शना जैन
'कहकोसु' नामक कथाग्रन्थ मुनि श्रीचन्द्र (वि० ११-१२ शता०) द्वारा लिखा गया है जो भगवती-आराधना पर आधारित है। इसमें विविध धार्मिक कथाओं का समावेश है। कथाओं के प्रसंग से तत्कालीन राजनैतिक परिवेश की जो सूचनाएँ मिलती हैं उन्हें ही यहाँ चित्रित किया गया है।
- सम्पादक
भूमिका साहित्य समाज की वास्तविकता का प्रतीक है। जिस समय साहित्य लिखा जाता है तत्कालीन समाज में राज्याधिकार, उत्तरदायित्व, प्रजा में दण्ड व्यवस्था आदि का उल्लेख साहित्य में अवश्य होता है। कहकोस एक जैन कथाग्रंथ है तथा भगवती आराधना पर आधारित है, इसमें विभिन्न कथाओं का वर्णन किया गया है। कहकोसु नामक ग्रंथ के रचयिता मुनि श्रीचन्द्र है। यह कवि की द्वितीय कृति है। कवि श्रीचन्द्र ने अपना यह कथाग्रंथ चौलुक्य नरेश मूलराज के राज्यकाल में अणहिल्लपुर पाटन में समाप्त किया था। मूलराज सोलंकी ने सं० ९९८ में चावड़ावंशीय अपने मामा सामन्तसिंह को मारकर राज्य छीन लिया था और गुजरात की राजधानी पाटन अणहिलवाड़े की गद्दी पर बैठ गया था। इसने वि०सं० १०१७ से १०५२ तक राज्य किया था। इसने धरणी वराह पर भी चढ़ाई की थी, तब उसने राष्ट्रकूट राजा धवल की शरण ली। धवल के वि०सं० १०५३ के शिलालेख से स्पष्ट है कि मूलराज सोलंकी चालुक्य राजा भीमदेव का पुत्र था, भीमदेव के तीन पुत्र थे, मूलराज, क्षेमराज और कर्ण। इनमें मूलराज का देहान्त अपने पिता भीमदेव के जीवन काल में ही हो गया था। अंतिम समय में क्षेमराज को राज्य देना चाहां परन्तु उसने स्वीकार नहीं किया। तब उसने कनिष्ठ पुत्र कर्ण को राज्य देकर सरस्वती नदी के तट पर स्थित मंडूकेश्वर में तपश्चरण किया। अतः श्रीचन्द्र ने अपना यह कथाकोश सन् ९९५ (वि०सं० १०५२) में या उसके एक-दो वर्ष पूर्व ही ई० सन् ९९३ में प्रणीत किया होगा।