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जिज्ञासा और समाधान
जिज्ञासा
तीर्थंकर पार्श्वनाथ जयन्ती के उपलक्ष्य में हम उनके दस भवों से सम्बन्धित जानकारी चाहते हैं। पार्श्वनाथ ऐतिहासिक महापुरुष थे, यह सभी स्वीकार करते हैं। उनके जीवन से हमें क्या विशेष शिक्षा मिलती है, इसका उल्लेख करने का कष्ट करें।
डॉ० ० राहुल कुमार सिंह
समाधान
नमः श्रीपार्श्वनाथाय विश्वविघ्नौनाशिने । त्रिजगत्स्वामिने मूर्ध्ना ह्यनन्तमहिमात्मने । । (१) पार्श्वनाथचरित, सकलकीर्ति तीर्थंकर महावीर से करीब २५०-३०० वर्ष पूर्व जैनधर्म के २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का जन्म उग्रवंशीय (इक्ष्वाकुवंशीय राजा विश्वसेन (अश्वसेन / हयसेन) के घर वामादेवी की गर्भ से वाराणसी में हुआ था। इनके जीवन-चरित से सम्बन्धित सामग्री जैनागमों और प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी आदि के काव्यग्रन्थों में मिलती है। इन ग्रन्थों में वर्णित चिन्तामणि, विघ्नहर, पार्श्वनाथ के दस भवों का वर्णन मिलता है जिनका अवलोकन करने से एक ही बात प्रमुख रूप से समझने में आती है " अपने प्रति वैमनस्य का तीव्र भाव रखने वाले के प्रति क्षमा, सहृदयता और मंगलभावना रखना चाहिए ।" उनके जो प्रमुख दस भव बतलाये गए हैं, वे इस प्रकार हैंपहला भव- अवसर्पिणी के चतुर्थ काल में पोदनपुर के राजा अरविन्द थे। उनके मंत्री/पुरोहित का नाम था- विश्वभूति ब्राह्मण। ये ही पार्श्वनाथ के उस जन्म के पिता थे। उनकी माता का नाम था अनुन्धरी / अनुद्धया । उनके दो पुत्र थे- कमठ और मरुभूति । कमठ की पत्नी का नाम था - वरुणा और मरुभूति की पत्नी का नाम थावसुन्धरा। वसुन्धरा बहुत सुन्दर थी जिस पर क्रोधी और दुराचारी बड़े भाई कमठ की कामान्ध दृष्टि लगी रहती थी। एक बार मौका पाकर उसने कपटपूर्वक उसके साथ दुराचार किया । मरुभूति के कामविरक्त स्वभाव को देखकर दोनों में परस्पर सम्बन्ध होने लगा। इस बात को जब मरुभूति ने स्वयं देखा तो उसने राजा से निवेदन किया। राजा कमठ को सिर मुड़ाकर राज्य से निकाल दिया। छोटे भाई इन्द्रभूति को राज्यश्रय मिलने से नाराज कमठ देशान्तर में जाकर पंचाग्नि तप करने लगा।
१. देखें- कल्पसूत्र, महापुराण, त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित, णासणाहचरियं (गुणभद्रगणि), पार्श्वाभ्युदय (जिनसेन), पार्श्वनाथचरित (वादिराज), पार्श्वनाथचरित (भट्टारक सकलकीर्ति), पार्श्वनाथपुराण (चन्द्रकीर्ति), पासणाहचरिउ (पद्मकीर्ति), पासचरिउ (रइधू), पासणाहचरिउ (श्रीधर, देवचन्द, पद्मनन्दि), पासपुराण (तेजपाल ), पार्श्वपुराण (भूधरदास) आदि।