Book Title: Sramana 2011 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 77
________________ ७० : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०११ १४. नीतिवाक्यामृतम्, १८/३ १५. सर्वविद्यासु कुशलो नृपो हृषि सुमंत्रवित् । मंत्रिभिस्तु विना मन्त्रं नैकोऽर्थ चिन्तये। शुक्रनीति, २/२ कौटिलीय अर्थशास्त्र, पृ० २८ आदिपुराण, ४/१९० कहकोसु, संधि ३ कहकोसु, संधि ३,१० नीतिवाक्यामृतम्, ५/६ रम्यं पशव्यमाजीव्यं जांगलं देशमावसेत् , तत्र दुर्षाणि कुर्वीत् जनकोशात्मगुप्त्ये । याज्ञवल्क्यस्मृति, १/३२१ कहकोसु, संधि ८ कहकोसु, संधि ३ शुक्रनीति, २/२ अर्थशास्त्र, पृ० २९-३० कहकोसु, संधि-४, ७, २२ आदिनाथपुराण, भाग-१, श्लोक २५०, कहकोसु, संधि ३, ४, ६, ७ आदिपुराण, १६/१७९ आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० ३३८ कहकोसु, संधि-६ कहकोसु, संधि ६ ३३. कहकोसु, संधि ५, ७ ३४. आदिपुराण में प्रतिपादित भारत, पृ० ३४५ ३६. कहकोसु, संधि ३, ५, ६ २४. प्रमुख सहायक ग्रंथ अर्थशास्त्र, कौटिल्य, संपा० एल. एन. रंगाराजन, पेंगुन बुक इंडिया, नई दिल्ली, १९९२ २. आदिपुराण, जिनसेनाचार्य, संपा० पन्नालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली,१९८८

Loading...

Page Navigation
1 ... 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130