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जैनागमों में स्वप्न विज्ञान : ७३ २. प्रतान स्वप्न- विस्तार से देखना। ३. चिन्ता स्वप्न- मन में रही हुई चिन्ता को स्वप्न में देखना। ४. तद्विपरीत स्वप्न- स्वप्न में देखी हुई घटना का विपरीत प्रभाव। ५. अव्यक्त स्वप्न-स्वप्न में दिखाई देने वाली वस्तु का पूर्ण ज्ञान न होना। स्वप्नों और महास्वप्नों की संख्या का निरूपण : विशिष्ट स्वप्नों की संख्या बहत्तर बतलाई गई है। वैसे तो स्वप्न असंख्य प्रकार के हो सकते हैं किन्तु फलसूचक स्वप्नों की संख्या ७२ है तथा महत्तम फलसूचक स्वप्नों की संख्या ३० है ये ३० महास्वप्न कहलाते हैं। महास्वप्न को देखने वाली महान् आत्माओं की माताएँ ही होती हैं। तीर्थंकर की माताओं को दिखाई देने वाले स्वप्न : तीर्थंकर बनने वाली
आत्माएँ जब गर्भ में अवतरित होती हैं तब उनकी माताएँ चौदह महास्वप्न देखती हैं१० यथा
१. उज्ज्वल वर्ण, पुष्ट स्कन्ध और बलिष्ठ शरीर वाला वृषभ देखना, २. श्वेत वर्ण वाला, पर्वत के समान ऊँचा और चार दाँत वाला गजराज देखना, ३. केसरी सिंह, ४. लक्ष्मी देवी, ५. पुष्पमाला, ६.चन्द्रमा, ७. सूर्य, ८. महाध्वज, ९. स्वर्ण कलश, १०. पद्म-सरोवर, ११. क्षीर-समुद्र, १२. देव-विमान, १३. रत्नों का ढेर एवं १४. धूम रहित प्रकाशमान अग्नि। ये महामंगलकारी स्वप्न दिखाई देते हैं। देवलोक से आने वाले तीर्थकर की मातायें ये स्वप्न देखती हैं परन्तु नरकों से जो आत्माएँ आती हैं उनकी मातायें देव-विमान के स्थान पर भवन का स्वप्न देखती हैं।११ उपरोक्त चौदह महास्वप्नों का फल१२ :
१. वृषभ दर्शन से उत्पन्न होने वाला पुत्र मोह रूपी कीचड़ में फंसे हुए धर्म रूपी रथ का उद्धार करने वाला एवं लोकोत्तम, पराक्रमी होगा, २. हस्ति-दर्शन से पुत्र महत् पुरुषों का गुरु एवं महान् बलशाली होगा, ३. सिंह-दर्शन से उत्पन्न पुत्र पुरुषों में सिंह के समान निर्भय, शूरवीर, धीर व पराक्रमी होगा, ४. लक्ष्मी-दर्शन का फलितार्थ यह कि पुत्र तीन लोक की राज्यलक्ष्मी का स्वामी होगा, ५. पुष्पमाला से पुत्र पुण्य दर्शन वाला होगा एवं संसार के प्राणी माला के समान उसकी आज्ञा को शिरोधार्य करेंगे, ६. चन्द्र-दर्शन से संकेत है कि पुत्र मनोहारी एवं आनंदकारी होगा।