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जैनागमों में स्वप्न विज्ञान : ७७ नवें स्वप्नानुसार तीन दिशाओं में धर्मध्यान कम होता-होता सिर्फ दक्षिण में धर्मोद्योत होगा। दसवें स्वप्न का तात्पर्य बताया कि लक्ष्मी नीच कुलों में वास करेगी।
ग्यारहवें स्वप्न का फलितार्थ है कि मलेच्छ राजा राज्य करेंगे। १२. बारहवें स्वप्न के फलस्वरूप छोटे-बड़ों की विनय नहीं करेंगे।
तेरहवें स्वप्न के अनुसार जिनधर्म की बागडोर छोटे-छोटे बच्चे संभालेंगे। मटमैली रत्न-राशि के दर्शनुसार भविष्य में चतुर्विध संघ में प्रेमभाव कम
होता चला जायेगा। १५. अधिकार मानव कुबुद्धि के होंगे, यह पन्द्रहवें स्वप्न का तात्पर्य है। १६. अंतिम स्वप्न के फलस्वरूप भविष्य में समय पर वर्षा नहीं होगी। एक-दो भव में मुक्त होनेवाले आत्माओं को दिखने वाले स्वप्न-संकेत :
कोई स्त्री या पुरुष, स्वप्न के अन्त में एक महान् अश्वपंक्ति, गज-पंक्ति या वृषभ पंक्ति का अवलोकन करता हुआ देखे, उस पर चढ़ने का प्रयत्न करता हुआ चढ़े तथा स्वयं को उस पर चढ़ा हुआ माने, ऐसा देख तुरंत जागृत हो तो वह उसी भव में सिद्ध होता है, यावत् सभी दुःखों का अन्त करता है। कोई स्त्री या पुरुष स्वप्न के अन्त में, समुद्र को दोनों ओर से छूती हुई, पूर्व से पश्चिम तक विस्तृत एक बड़ी रस्सी को देखने का प्रयत्न करता हुआ देखे, अपने दोनों हाथों से उसे. समेटता हुआ समेटे, फिर अनुभव . करे कि मैंने स्वयं रस्सी को समेट लिया है, ऐसा देखकर जागृत हो तो, वह उसी भव में सिद्ध होता है।
ऐसे ही चौदह स्वप्नों का उल्लेख भगवती सूत्र में मिलता है जो एक या दो भव करके सिद्ध, बुद्ध और मुक्त होती हैं। स्वप्न एवं स्वप्न के फल का विचार या चिन्तन साहित्य-जगत् में प्रारंभ से ही हुआ है, क्योंकि जो भी दिव्य पुरुष या दिव्य नारियाँ हुई हैं, उन्होंने जो स्वप्न देखे हैं वे शुभ हैं तो अच्छे परिणामों को दर्शाते रहे। अशुभ के संकेतों ने भी मानवीय जीवन को प्रभावित किया है। स्वप्न विज्ञान ज्योतिषीय दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है। इनका गणितीय आधार आगमों में दिया गया है। इन पर शोध आवश्यक है।