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कहकोसु (कथाकोश) में वर्णित राजनैतिक चिंतन : ६७ कहकोसु में वात्सल्य अंग की कथा में राजा श्रीधर्म के द्वारा चारों मंत्रियों को प्राणदण्ड की सजा दी जाती है परन्तु मुनि श्रुतसागर जी के द्वारा मना करने पर उन्हें मुँह काला करके देश निकाला दे दिया जाता है। इसी प्रकार व्यंजनहीन कथा, अर्थहीन कथा, व्यंजन-अर्थहीन कथा, व्यंजन अर्थ उभयशुद्धि कथा में राजा के द्वारा पाठक को अशुद्ध वाचन करने पर या अशुद्ध अर्थ बताने पर भिन्न-भिन्न दण्ड दिया जाता है। इसी प्रकार वारिषेण मुनि के कथानक में राजा श्रेणिक के द्वारा राजकुमार वारिषेण को चोरी के अपराध में मृत्युदण्ड की सजा दी जाती है परन्तु देवों द्वारा वारिषेण राजकुमार की रक्षा की जाती है। कल्लासमित्र की कथा में पुरोहित का शराब पीना सिद्ध होने परराजा के द्वारा उसे देश निकाले की सजा दी जाती है।२८ इससे स्पष्ट होता है कि प्राचीन समय में दण्ड का प्रावधान था। आर्थिक जीवन अर्थशास्त्र का विषय मनुष्य है। मनुष्य किस प्रकार आय प्राप्त करता है और उसे व्यय करके अपनी भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति किस विधि के अनुसार करता हुआ सुख और कल्याण प्राप्त करता है, यह अर्थशास्त्र का अध्ययनीय विषय है। आदिपुराण मे आजीविका के प्रमुख छः साधनों का निर्देश पाया जाता है
असिमषिः कृषिर्विद्या वाणिज्यं शिल्पमेव च,
कर्माणीमानि षोढा स्युः प्रजाजीवन-हेतवः २९ अर्थात् असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प- ये छ: कार्य प्रजा की आजीविका के साधन हैं। कहकोस में असि, शिल्प, विद्या, वाणिज्य के दृष्टांत ही दिये है मषि, और कृषि के दृष्टांतों का अभाव है। असि असि कर्म मुख्यतः सैनिक वृत्ति है। सेना की नौकरी करते हुए आजीविका अर्जन करना असिवृत्ति के अन्तर्गत आता है। वर्णव्यवस्था में क्षत्रिय के कर्त्तव्य कर्म असि वृत्ति के अन्दर समाहित है।३० असिवृत्ति का कार्य उस क्षेत्र तक ही ग्राह्य है जिस क्षेत्र में समाज, धर्म, देश एवं राष्ट्र की रक्षा का सम्बन्ध रहता है जब असि कर्म उस क्षेत्र की सीमा का अतिक्रमण कर जाता है उस समय त्याज्य हो जाता है। कहकोसु में युद्ध के लिए तैयार सैनिक तथा सेनापति, द्वारपाल असिवृत्ति से ही जीविका का अर्जन करते हैं। हरिषेण चक्रवर्ती की सेना में सैनिकों की संख्या को देखकर यह प्रतीत होता है कि प्राचीन समय में सैनिक कर्म भी