Book Title: Sramana 2011 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 71
________________ ६४ : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ४ । अक्टूबर-दिसम्बर २०११ के बिना राज्य रूपी रथ का संचालन नहीं कर सकता।१४ शुक्रनीति में कहा गया है कि राजा चाहे समस्त विद्याओं में कितना ही दक्ष क्यों न हो फिर भी उसे मंत्रियों की सलाह के बिना किसी भी विषय पर विचार नहीं करना चाहिए।१५ राजा मंत्री की आंखों से देखता है अर्थात् उनकी दृष्टि से अपनी नीति निर्धारित करता है । अमात्य की योग्यता के सम्बन्ध में बताया गया है कि कुलीन, श्रुति सम्पन्न, पवित्र, अनुरागी, वीर, धीर, निरोग, नीतिशास्त्र में पण्डित, प्रगल्भ, वाग्मी, प्राज्ञ, राग-द्वेष से रहित, सत्यसन्ध, महात्मा, दृढ़ चित्त वाला, प्रजा का प्रिय तथा दक्ष होना चाहिए। कौटिल्य अर्थशास्त्र में उल्लेख है कि अमात्य की नियुक्ति अपने देश में उत्पन्न हुए, कलीन प्रगल्भ और पवित्र व्यक्ति की होनी चाहिए।१६ मनु के अनुसार मंत्रि परिषद् के सदस्य सात या आठ होने चाहिए तथा आदिपुराण में उल्लेख है कि मंत्रि परिषद् में कम से कम चार तथा अधिक से अधिक सात मंत्री होते थे। कहकोसु में उल्लेख आता है कि राजा श्रीधर्म के बालि, नमुचि, प्रह्लाद, बृहस्पति नाम के चार मंत्री थे। इससे प्रतीत होता है कि कम से कम चार मंत्री तो होते ही थे तथा चार से अधिक होते थे या नहीं इसका उल्लेख नहीं मिलता।८ मंत्री सदैव प्रजा हित व राज्य हित में परामर्श देते थे। कहकोस में संधि दस में राज्य में राजा के अभाव में मंत्री ने ही मुनि श्रीधर को समझाकर पुनः राजा बनने में हितकारी भूमिका निभाई थी। कहकोस में यह भी उल्लेख प्राप्त होता है कि मंत्री यदि राज्यहित के अलावा राजा के धर्म से द्वेष करने वाला है तो वह राजा को सदैव अपने धर्म की ओर उन्मुख करने का प्रयास करता है। उदाहरण स्वरूप वात्सल्य अंग की कथा में श्रीधर्म राजा को चारों मंत्री अपने वैष्णव धर्म की ओर आकृष्ट करने का सतत् प्रयास करते रहे और इस हेतु राजा को जैनधर्म से विद्वेष करने वाली बातें बताते रहे। राजा को सदैव दूसरे पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। सदैव दूसरे पर निर्भर रहने पर मंत्रियों के द्वारा राजा पद्म के समान छल से राज्य-सत्ता समाप्त की जा सकती है।९ राष्ट्र/राज्य राज्य के सप्तांगों में राष्ट्र या राज्य का तृतीय स्थान है। वर्णाश्रम, धन्य, सुवर्ण, पशु, तांबा, लोहा आदि धातुओं से युक्त पृथ्वी को राज्य कहते हैं।२० याज्ञवल्क्य के अनुसार 'राजा के राष्ट्र की समृद्धि इसकी मिट्टी के गुणों पर निर्भर रहती है, राष्ट्र-समृद्धि से राजा की समृद्धि होती है, अत: राजा को चाहिए वह समृद्धि के लिए अच्छे गुणों से युक्त ऐसी भूमि का चुनाव करे जिसमें प्रचुर अन्न उपजे, जहाँ खनिज हो, जहाँ

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