Book Title: Sramana 2011 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 54
________________ जैन दर्शन में प्रमेय का स्वरूप एवं उसकी सिद्धि : ४७ भाव की ही अनुपपत्ति होगी क्योंकि अन्यत्व होने पर भी समान परिणाम और असमान परिणाम तथा उभय ये भिन्न स्वभाव वाले हैं। उदाहरणार्थ- समान बुद्धि और शब्द में कारण स्वभाव वाला वह समान परिणाम तथा विशिष्ट बुद्धि और शब्द उत्पन्न करने वाले इतर परिणाम यथोक्त संवेदन और अभिधान (शब्द), संवेद्य और अभिधेय हैं वही विषादि हैं, ऐसी प्रतीति है, अन्यथा यथोक्त (सामान्य-विशेषरूप) संवेदनादि के अभाव का प्रसंग आएगा। इसलिए यद्यपि दोनों (विष और मोदक) उभयरूप (सामान्य-विशेषरूप) हैं तथापि विषार्थी विष के लिए ही प्रवृत्त होता है क्योंकि विष का विशेष परिणाम मोदक के सामान्य परिणाम से अविनाभूत नहीं है। अत: उक्त शंका अयोग्य है। इस प्रकार वस्तु सामान्य-विशेषात्मक सिद्ध होती है। & o सन्दर्भ सूची पाणिनिसूत्र, मद्रास गवर्नमेण्ट ओरिएण्टल मैनुस्क्रिप्ट सिरीज, गवर्नमेण्ट ऑफ मद्रास, १९५४, १/४/४२, पृ० ७३, उद्धृत, भारतीय ज्ञानमीमांसा, डॉ. नीलिमा सिन्हा मोतीलाल बनारसीदास, दिल्ली २००५, पृ० ३८, न्यायदीपिका, अभिनवधर्मभूषण यति, अनु०- डॉ० दरबारी लाल कोठिया, जैनविद्या संस्थान, महावीर जी, राज०, २००७, १/८, पृ० ९९, स्वापूर्वार्थव्यवसायात्मकं ज्ञानं प्रमाणम्। - १/१, परीक्षामुख, आचार्य माणिक्यनन्दी, पं० टोडरमल स्मारक ट्रस्ट, जयपुर, २००९, पृ० १०, प्रमाणादर्थ संसिद्धिस्तदाभासाद्विपर्ययः। - मंगलाचरण गाथा, वही, पृ० ९, प्रमाणैरर्थपरीक्षणं न्यायः। - १/१/१, न्यायसूत्र उद्धृत न्यायदर्शनम्, चौखम्भा संस्कृत संस्थान, वाराणसी, पृ० ८, अनन्तधर्मकं वस्तु प्रमाणविषयस्त्विह। - का० ५५, षड्दर्शनसमुच्चय, आचार्य हरिभद्र, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, १९८१, पृ० ३१२, प्रमाणस्य विषयो द्रव्यपर्यायात्मकं वस्तु। - १/१/३०, प्रमाणमीमांसा, हेमचन्द्र, सरस्वती पुस्तक भण्डार, अहमदाबाद, १९८९, पृ० २४, सामान्यविशेषात्मा तदर्थो विषयः। - ४/१, परीक्षामुख, पूर्वोक्त, पृ० ५८, अर्थक्रिया सामर्थ्यात्। - १/१/३१, प्रमाणमीमांसा, पूर्वोक्त, पृ० २५, ___ अनुवृत्तव्यावृत्तप्रत्ययगोचरत्वात्पूर्वोत्तराकार परिहारावाप्तिस्थिति-लक्षण परिणामेनार्थक्रियोपत्तेश्च।। - ४/२, परीक्षामुख, पूर्वोक्त, पृ० ५८, १२. डॉ० वीरसागर जैन, न्यायमन्दिर, जैनविद्या संस्थान, श्रीमहावीरजी, राजस्थान, ११.

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