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जैन दर्शन में प्रमेय का स्वरूप एवं उसकी सिद्धि
डॉ० राहुल कुमार सिंह भारतीय और पाश्चात्य सभी दर्शनों में 'प्रमेय' का विचार किया गया है। 'प्रमेय' को प्रमाण और प्रमाता से पृथक् माना जाय या नहीं? प्रमेय का एक मानें या अनेक? प्रमेय सामान्यात्मक है या विशेषात्मक या उभयात्मक, इस पर विचार करते हुए लेखक ने जैनदृष्टि से उभयरूप सिद्ध किया है।
- सम्पादक
प्रत्येक दार्शनिक सम्प्रदाय अपनी तत्त्वमीमांसीय गवेषणाओं के अनुरूप ही अपनी ज्ञानमीमांसीय विवेचना प्रस्तुत करता है क्योंकि ज्ञानमीमांसा तत्त्वमीमांसा का साधन है। तत्त्वमीमांसा से अवियोज्य होने के कारण ज्ञान को सामान्यतः 'विषय के प्रकाशक' के रूप में ही स्वीकार किया गया है। विषय की यह प्रकाशना ज्ञाता की चेतना में होती है। विषय जिस रूप में ज्ञाता की चेतना में उपस्थित होता है, विषय का वह रूप, विषय की उपस्थिति की वह क्रिया और स्वयं ज्ञाता मिलकर ज्ञान अथवा बोध की सर्जना करते हैं। इस रूप में यहाँ 'त्रिपुटी ज्ञान' अर्थात् ज्ञाता, ज्ञेय और ज्ञान का साधन (प्रमाण) की धारणा का जन्म होता है। वस्तु के यथार्थ ज्ञान को प्रमा की संज्ञा दी गई है। प्रमा चूँकि एक प्रकार का ज्ञान है अतएव यहाँ प्रमा का स्वरूपनिरूपण भी त्रिपुटी ज्ञान के रूप में किया गया है। त्रिपुटी ज्ञान में प्रमा के तीन संघटक तत्त्व हैं- प्रमाता (प्रमा को प्राप्त करने वाला), प्रमेय (प्रमा की विषय-वस्तु) और प्रमाण (प्रमा का साधन)। प्रस्तुत आलेख का विवेच्य प्रमेय है किन्तु यहाँ प्रसंगवश प्रमाण का सामान्य एवं संक्षिप्त परिचय अपेक्षित है। भारतीय दर्शन में प्रमाण तीन अर्थों- प्रमा के पर्यायवाची के रूप में, प्रमा के साधन (करण) के रूप में तथा प्रमा के कारण के अर्थ में व्यवहत हुआ है। यहाँ द्वितीय एवं तृतीय अर्थ ही विचारणीय हैं। प्रमाण प्रमा का 'करण' (साधन) अथवा 'कारण' है। 'कारण' पद की व्याख्या करते हुए पाणिनि' ने इसे 'साधकतम् करणम्' कहा है अर्थात् क्रिया की सिद्धि में जो सर्वाधिक प्रकृष्ट रूप से प्रवृत्त हो वही साधन है। इस प्रकार 'करण' के रूप में प्रमाण 'प्रमा का साधन है। वस्तुत: कारण और करण में कोई मौलिक भेद नहीं है। भारतीय दर्शन में तीन प्रकार के कारण बतलाये गए हैं- उपादान कारण, निमित्त कारण और प्रयोजन कारण। इनमें निमित्त कारण को करण कहा गया है। वस्तुत: 'कारण' का सम्प्रत्यय करण से अधिक व्यापक है। करण कारण का अंश है। “इसीलिए नैय्यायिक उद्योतकर ने कहा है कि प्रमाण को 'प्रमा के कारण'