Book Title: Sramana 2011 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 42
________________ १०. ११. वैदिक एवं जैन परम्परा में द्रौपदी कथानक : उद्भव एवं विकास : ३५ मार्कण्डेयपुराण (प्रथम खण्ड), पं० श्रीराम शर्मा आचार्य, संस्कृतिसंस्थान, बरेली (उ.प्र.), द्वि० संस्क०, १९६९, प्रकरण ४ / श्लोक ३२, ३४, प्रकरण ५ / श्लोक २५, प्रकरण ७/१-६८ किरातार्जुनीयम्, भारवि, निर्णय सागर प्रेस, बम्बई, १९९५, सर्ग. १/ २७-४५, सर्ग २/१-२४, सग ३/१७-३०, ३६-५५ । वेणीसंहारम्, भट्टनारायण, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, १९६१ बालभारत, राजशेखरसूरि, काव्यमाला-४५, निर्णयसागर प्रेस, बम्बई, १८९४ भारतमञ्जरी, क्षेमेन्द्र, सम्पा.- पं. शिवदत्त एवं काशीनाथ पाण्डुरङ्ग परब, निर्णय सागर प्रेस, बम्बई, १८९८, पर्व १, २, ३, ४, ११, १७, १८ युधिष्ठरविजयम्, वासुदेव, काव्यमाला-६०, भारतीय विद्या प्रकाशन, दिल्ली एवं वाराणसी, पुनर्मुद्रण संस्करण, १९८३, आश्वास १, २, ३, ४, ५, ८ चम्पूभारतम्, अनन्तभट्ट, निर्णयसागर प्रेस, प्रथम संस्करण, सन् १९५०, स्तवत २, ३, ४, ५, ६, १२ स्थानाङ्गसूत्र, सम्पा० श्रीमधुकर मुनि, जिनागम ग्रन्थमाला-७, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर, राजस्थान, १९८१, स्थान १० / सूत्र १६०, ওওও ज्ञाताधर्मकथा, सम्पा० मधुकर मुनि, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर, राजस्थान, १९८१, अध्ययन १६ प्रश्नव्याकरणसूत्र, सम्पा० मधुकरमुनि, आगम प्रकाशन समिति, व्यावर (राजस्थान), १९८३, अध्याय ४, सूत्र १६ कल्पसूत्र, जैनोदय पुस्तक प्रकाशन समिति, रतलाम, १९४८ हरिवंशपुराण, जिनसेन, सम्पा० पं. पन्नालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, १९६२, सर्ग ४५ / श्लोक १२०-१५५, सर्ग ४६ / श्लोक २, ५७, सर्ग ४७ / १-१० द्विसन्धानमहाकाव्य, धनञ्जय, भारतीय ज्ञानपीठ, वाराणसी, १९७०, सर्ग ५२/८८-८९, सर्ग ५४/३-७४ । उत्तरपुराण, आचार्य गुणभद्र, सम्पा० पन्नालाल जैन, भारतीय ज्ञानपीठ, काशी, १९५४, सर्ग ७२ / श्लोक १९८-२७४ बृहत् कथाकोश, हरिषेण, सम्पा० आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये, भारतीय विद्याभवन, १९४३, कथानक ४३ / श्लोक १-९, कथानक १२. १३. १४. १५. १८.

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