Book Title: Sramana 2011 10
Author(s): Sundarshanlal Jain, Ashokkumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 37
________________ ३० : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०११ द्रौपदी विभिन्न प्रकार से अपमानित की जाती है। यहाँ तक कि चीरहरण जैसा कुकृत्य भी किया जाता है। पराजित पाण्डवों के साथ वह भी वनगमन करती है। वनवास में वह युधिष्ठिर आदि को समय-समय पर कर्त्तव्यबोध कराती रहती है। अज्ञातवास की अवधि में वह विराटनगर की महारानी सुदेष्णा की दासी (सैरन्ध्री) के रूप में राजमहल में सेवारत रहती है और वहाँ उससे बलात् प्रणय की इच्छा रखने वाले कीचक का भीम द्वारा वध होता है। द्रौपदी के अपमान के प्रतिशोध हेतु 'महाभारत' का महान् युद्ध होता है। इसमें विजयी पाण्डव राज्य प्राप्त करते हैं एवं द्रौपदी महारानी के पद पर आसीन होती है। कालान्तर में नाना सुखों को भोगती हुई वह पतियों के साथ स्वर्गलोक को प्रस्थान करती है। 'महाभारत' के 'आदिपर्व' से ‘स्वर्गारोहण पर्व' तक प्राय: सभी पर्यों में द्रौपदी का प्रसङ्ग मिलता है। 'महाभारत के पश्चात् कुछ पुराणों में द्रौपदी का उल्लेख हुआ है। 'भागवतपुराण'२ में कृष्ण की महत्ता का प्रतिपादन करने के प्रसङ्ग में द्रौपदी-कथा मिलती है। इसमें महाप्रस्थान के समय पापवश मार्ग में भूमि पर गिर पड़ी द्रौपदी द्वारा कृष्ण का स्मरण करना एवं तत्पश्चात् स्वर्गलोक जाना वर्णित है। 'ब्रह्मवैवर्तपुराण'३ में द्रौपदी को और अधिक दैवीय रूप प्रदान करने के लिए उसे पूर्वजन्म की सीता कहा गया है। 'मार्कण्डेय पुराण' में भी द्रौपदीचरित को उभारने के लिए उसको मात्र एक ही इन्द्र की पत्नी बताया गया है, जो पाँच देवताओं के अंश से उत्पन्न हुए थे। आर्षकाव्यों के पश्चात् सर्वप्रथम षष्ठ शती के लगभग भारवि रचित 'किरातार्जुनीय'५ में द्रौपदी का वर्णन मिलता है। इस महाकाव्य में द्रौपदी का अपेक्षाकृत अधिक ओजस्वी स्वरूप चित्रित हुआ है। यहाँ वह एक राजनीतिज्ञ एवं कूटनीतिज्ञ के रूप में उभरकर आती है। अष्टम शताब्दी की भट्टनारायण की कृति 'वेणीसंहार' में वह एक अपमानित, दुःखी नारी के रूप में चित्रित है, जो प्रतिशोध के लिए व्यग्र है। इसके साथ ही उसमें भीम के प्रति अतिशय प्रेम के दर्शन होते हैं। वह भीम की मृत्यु जानकर प्रलाप करती है और स्वयं जल जाने हेतु चिता तैयार करने का आदेश देती है। राजशेखर (८८०-९२० ई०) की अपूर्ण कृति 'बालभारत', क्षेमेन्द्र (१०२५-१०६६ ई०) रचित 'भारतमञ्जरी'', वासुदेवकृत (१२वीं शती) 'युधिष्ठिरविजय एवं अनन्तभट्ट विरचित (१५वीं शताब्दी) 'भारतचम्पू'१० में मिलने वाली द्रौपदी कथा 'महाभारत' के ही समान है। जैन परम्परा जैन-परम्परा में आगमों में द्रौपदी-वृत्तान्त सूत्र रूप में एवं विस्तार से भी प्राप्त होते हैं। जैन-परम्परा में आगमों का वही स्थान है, जो वैदिक परम्परा में वेदों का है। जैन

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