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वैदिक एवं जैन परम्परा में द्रौपदी कथानक :
उद्भव एवं विकास
डॉ० शीला सिंह
जैन परम्परा में वैदिक ऋषियों, सीता, द्रौपदी आदि नारियों तथा कृष्ण, राम आदि महापुरुषों के जैनपरम्परानुमोदित चरित्र जो पुराणों और काव्यों में मिलते हैं। जैनागम ग्रन्थों में भी उनके कथानक सूत्ररूप में प्राप्त होते हैं। उनमें द्रौपदी का चरित्र उभय-परम्परा में किस प्रकार प्राप्त होता है। इसका तुलनात्मक विवेचन विदुषी ने इस आलेख में किया है। इसका शोधप्रबन्य भी पार्श्वनाथ विद्यापीठ शीघ्र प्रकाशित कर रहा है।
-सम्पादक
वैदिक परम्परा द्रौपदी से सम्बद्ध कथानक वैदिक संहिताओं, वेदाङ्गों और उपनिषदों में साक्षात् उपलब्ध नहीं होते। यद्यपि वैदिक संहिताओं एवं ब्राह्मण ग्रन्थों में 'महाभारत' के वंश, स्थान एवं कुछ प्रमुख चरितनायकों के नाम अवश्य मिलते हैं परन्तु उनसे द्रौपदी के सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं मिलती। सर्वप्रथम द्रौपदी का प्रसङ्ग आर्षकाव्यों; विशेषकर 'महाभारत'१ में ही उपलब्ध होता है और यहीं द्रौपदी-कथा अपने पूर्ण विकसित रूप में दिखाई देती है। आर्षकाव्य 'महाभारत' में द्रौपदी का विवेचन व्यवस्थित रूप में मिलता है। यहाँ उल्लेखनीय है कि वर्तमान 'महाभारत' महाकाव्य का भी विकास- 'भारत', 'जयभारत' और 'महाभारत' के रूप में- तीन चरणों में हुआ है। अत: उसमें द्रौपदीकथा का विकास-क्रम, पूर्ण रूप से विवेचित करना सम्भव नहीं है। 'महाभारत' में द्रौपदी के जन्म से लेकर परलोक-गमन तक की कथा पूर्ण विस्तार के साथ चित्रित है। द्रौपदी का प्राकट्य महर्षि याज द्वारा सम्पादित यज्ञकुण्ड से हुआ था। विवाह योग्य होने पर स्वयंवर द्वारा पाण्डु-पुत्र 'अर्जुन' का वह वरण करती है; किन्तु विशेष परिस्थितिवश उसका विवाह पाँचों पाण्डु-पुत्रों के साथ सम्पन्न हो जाता है, इस घटना के मूल में उसके पूर्वजन्म में भगवान् शिव द्वारा दिया गया वरदान है। कालान्तर में कौरवों के षड्यन्त्र के शिकार ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर, द्यूतक्रीड़ा में सर्वस्व सहित पत्नी को भी हार जाते हैं। कौरवों द्वारा सभाभवन में बलात् लायी हुई