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वैदिक एवं जैन परम्परा में द्रौपदी कथानक : उद्भव एवं विकास : ३१ आगमों में द्रौपदी का उल्लेख सर्वप्रथम 'स्थानाङ्गसूत्र'११ में दस आश्चर्यकों के वर्णन-क्रम में पाँचवें आश्चर्य 'कृष्ण के अमरकङ्का गमन' के रूप में मिलता है। कृष्ण, अमरकङ्का के राजा पद्मनाभ द्वारा अपहृत द्रौपदी को मुक्त कराने वहाँ जाते हैं। द्रौपदी सम्बन्धी यह घटना 'महाभारत' में प्राप्त नहीं होती है। यद्यपि 'स्थानाङ्गसूत्र' में सर्वप्रथम द्रौपदी-कथा का सङ्केत मिलता है, तथापि द्रौपदी-कथा का विस्तृत रूप हमें 'ज्ञाताधर्मकथाङ्ग'१२ में मिलता है। इसमें उपलब्ध द्रौपदी कथा, वैदिक परम्परा की द्रौपदी कथा से पर्याप्त भिन्न है। यहाँ द्रौपदी के पूर्वभवों की कथा को प्रमुख स्थान दिया गया है तथा दिखाया गया है कि एक जन्म में कृत पापों या पुण्यों का फल अन्य जन्मों में भी भोगना पड़ता है। इसके अतिरिक्त 'ज्ञाताधर्मकथा' में 'कृष्ण के अमरकङ्का गमन' सम्बन्धी पाँचवें आश्चर्य के वर्णन-प्रसङ्ग में द्रौपदी का अमरकङ्का के राजा पद्मनाभ द्वारा हरण आदि वृत्तान्त विस्तार से वर्णित है। 'प्रश्नव्याकरणसूत्र' १३ नामक अङ्ग आगम में प्रतिपादित पाँच संवरों में एक 'ब्रह्मचर्य' की महत्ता को बताने के लिए स्त्री-विषयक आसक्ति एवं कामाचार के फलस्वरूप होने वाले युद्धों के वर्णन में द्रौपदी का नामोल्लेख हुआ है। यह उल्लेख 'ज्ञाताधर्मकथा' में वर्णित वृत्तान्त- द्रौपदी का हरण करने वाले पद्मनाभ एवं कृष्ण सहित पाण्डवों के मध्य अमरकङ्का में होने वाले युद्ध का ही सङ्केत करता है। 'कल्पसूत्र'१४ में पाँचवें आश्चर्यक ‘कृष्ण का अमरकङ्का गमन' वर्णित है। इस सूचना से भी पद्मनाभ द्वारा द्रौपदी-हरण की घटना का पता चलता है। जिनसेनकृत ‘हरिवंशपुराण'१५ (७८३ ई०) में प्राप्त द्रौपदी-कथा वैदिक एवं जैन परम्पराओं का मिश्रित रूप है। इसमें आचार्य जिनसेन ने 'ज्ञाताधर्मकथा' में प्राप्त द्रौपदी के पूर्वभव की कथा को भी अपनी कल्पनाशक्ति से परिवर्तित किया है और वर्तमानभव की कथा को 'महाभारत' से ग्रहण कर उसे जैन परिवेश प्रदान किया है। इसमें द्रौपदी सम्बन्धी द्यूत-क्रीड़ा, वनवास, अज्ञातवास आदि वृत्तान्त; जिनका 'ज्ञाताधर्मकथा' में सर्वथा अभाव है, वर्णित हैं। इस प्रकार 'हरिवंशपुराण' में द्रौपदीकथा का पूर्ण विकसित रूप दृष्टिगोचर होता है। 'हरिवंशपराण' और धनञ्जय (८वीं शती) की रचना 'द्विसन्धानकाव्य'१६ में कीचक वृत्तान्त भिन्न रूप में प्राप्त होता है। इसमें कीचक की भीम के हाथों मृत्यु नहीं होती बल्कि भीम से पराजित कीचक द्वारा तपस्या करने का उल्लेख मिलता है। गुणभद्र ‘उत्तर-पुराण'१७ (महापुराण) (८४८-८५० ई०) में भी द्रौपदी-कथा अपने सम्पूर्ण रूप में उपलब्ध होती है तथा 'हरिवंशपुराण' से समानता रखती है। इस ग्रन्थ