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२० : श्रमण, वर्ष ६२, अंक ४ / अक्टूबर-दिसम्बर २०११ छह, सात, आठ, नव, दश, संख्यात एवं असंख्यात प्रदेश भी धर्मास्तिकाय नहीं होते। धर्मास्तिकाय का अखण्ड ग्रहण होने पर ही उसे धर्मास्तिकाय कहा जाता है। एक प्रदेश भी न्यून होने पर उसे धर्मास्तिकाय कहना सम्भव नहीं। जब धर्मास्तिकाय के समस्त असंख्यात प्रदेश निरवशेष रूप से गृहीत होते हैं तभी उसे धर्मास्तिकाय कहा जाता है। धर्मास्तिकाय के समान ही अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय और पुद्गलास्तिकाय का भी अखण्ड रूप स्वीकार किया जाता है। अस्तिकाय एवं द्रव्य का भेद पुद्गल और जीव में पूर्णत: स्पष्ट होता है क्योंकि वे द्रव्य से अनन्त हैं एवं अस्तिकाय से एक-एक हैं। जब पुद्गलास्तिकाय शब्द का प्रयोग किया जाता है तो उसमें समस्त पुद्गलों का समावेश हो जाता है, किन्तु द्रव्य की दृष्टि से पुद्गल अनन्त हैं। स्कन्ध, देश एवं प्रदेश भी पुद्गल द्रव्य हैं। पुस्तक, भवन, लेखनी, कुर्सी आदि पुद्गल द्रव्य हैं, किन्तु अस्तिकाय नहीं। इसी प्रकार अनन्त जीव अनन्त द्रव्य तो हैं, किन्तु सब मिलाकर एक जीवास्तिकाय हैं। अस्तिकाय और द्रव्य में यह सूक्ष्म भेद व्याख्याप्रज्ञप्ति में वर्णित है। काल द्रव्य तो है, किन्तु अस्तिकाय नहीं, क्योंकि उसका कोई स्वरूप नहीं बनता है। काल के प्रकार : स्थानाङ्गसूत्र, षट्खण्डागम, नियमसार, तत्त्वार्थराजवार्तिक, गोम्मटसार आदि ग्रन्थों में काल के प्रकारों का निरूपण है। काल के परमार्थ एवं व्यवहार भेद प्रसिद्ध हैं।७४ इन्हें निश्चिय एवं व्यवहार भी कहा जाता है। काल के मुख्यत: तीन प्रकार हैं-अतीत, अनागत और वर्तमान।५ ये व्यवहारकाल के ही भेद हैं। नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव की अपेक्षा से काल चार प्रकार का है। गुणस्थिति, भवस्थिति, कर्मस्थिति, कायस्थिति, उपपाद और भावस्थिति की अपेक्षा से काल के छह प्रकार है।६ विशेषावश्यकभाष्य और लोकप्रकाश मे निक्षेप की अपेक्षा से काल के ११ प्रकार निरूपित है,७७ यथा-१. नामकाल, २. स्थापनाकाल, ३. द्रव्यकाल, ४. अद्धाकाल, ५. यथायुष्ककाल, ६. उपक्रमकाल, ७. देशकाल, ८. कालकाल, ९. प्रमाणकाल, १०. वर्णकाल और ११. भावकाल। किसी का 'काल' नाम रखना नामकाल है। किसी वस्तु अथवा व्यक्ति की प्रतिकृति, मूर्ति अथवा चित्र में काल का गुण-अवगुण रहित आरोपण करना स्थापना काल है। जैसे रेतघड़ी की रेत के एक खण्ड से दूसरे खण्ड में आने की अवधि में मुहूर्त या घण्टे की स्थापना करना स्थापना काल है। सचेतन और अचेतन द्रव्यों की स्थिति