Book Title: Sramana 1999 04
Author(s): Shivprasad
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 17
________________ श्रमण/अप्रैल-जून/१९९९ में भी ध्वनि-चिकित्सा के बहुत से प्रयोग कराये जाते हैं। कहा भी गया है - जहाँ हजार दवाइयाँ काम नहीं करती हैं, वहां एक शब्द काम कर जाता है। __ शब्दों का गठन, प्रकम्पन और भावना - इन तीनों का योग बनता है और जप शुरू हो जाता है; व्यक्ति भावातीत स्थिति में चला जाता है। प्रेक्षाध्यान में जप का प्रयोग अनुप्रेक्षा के साथ चलता है। अनुप्रेक्षा का अर्थ है बार-बार उसका चिन्तन-मनन करना। अनुप्रेक्षा भी स्वाध्याय का ही एक प्रकार है तथा स्वाध्याय ध्यान का आदि सोपान है। अनुप्रेक्षा में आवृत्तियाँ की जाती हैं और बार-बार आवृत्ति करते रहने से ही मन पर उसका संस्कार होना शुरू हो जाता है। शब्द की महिमा का प्रभाव व्यक्ति के भीतर तक जमा हुआ है। व्यक्ति सारे अर्थों को शब्द के माध्यम से ही जानता है। यही कारण है कि शब्द-शक्ति से सम्बन्धित जितने भी प्रयोग हैं उनका महत्त्व बढ़ गया है। दोनों ही ध्यान-पद्धतियां जप को महत्त्व देती हैं, क्योंकि जप में लीन हुए या एकाग्र हुए बिना हम शून्य में प्रवेश नहीं कर सकते हैं। शून्य में जाने का अर्थ ही है - भावातीत होना। यहाँ हम दोनों ही ध्यान विधि का संक्षिप्त रूप दे रहे हैं। आशा है इससे पाठक लाभान्वित होंगे तथा इसे अपने जीवन में प्रयोग कर इसके महत्त्व को समझेंगे। प्रेक्षाध्यान प्रयोग-विधि (१) सर्वप्रथम प्रयोग हेतु सुखासन, वज्रासन, पद्मासन या अर्द्धपद्मासन में से किसी एक आसन में स्थिर होकर बैठ जायें। समय-२मिनट। (२) आंखों को बिना दबाव दिए कोमलता से बन्द करें। (३) दोनों हथेलियों को नाभि के नीचे स्थापित करें। बायी हथेली नीचे और दायीं हथेली ऊपर (ब्रह्म-मुद्रा) अथवा दोनों हथेलियों को घुटनों पर रखें; अंगूठा व तर्जनी अंगूली को मिलायें तथा शेष तीनों अंगुलियां सीधी रहें (ज्ञान मुद्रा)। समय-२ मिनट। (४) अर्हम् या महाप्राण की ध्वनि नौ बार करें। समय-३ मिनट। (५) कायोत्सर्ग (Relaxation) – पैर से सिर तक शरीर के प्रत्येक भाग पर चित्त को केन्द्रित कर स्वत: सूचन (Auto-Suggestion) के द्वारा शिथिलता का सुझाव देकर पूरे शरीर को शिथिल करें। पूरे प्रयोग काल तक कायोत्सर्ग की मुद्रा बनी रहे। पूरा शरीर स्थिर एवं निश्चल रहे। समय-५ मिनट। (६) लयबद्ध दीर्घ श्वास प्रेक्षा - गहरा लम्बा लयबद्ध श्वास लें। गहरा लम्बा लयबद्ध श्वास छोड़ें। एक श्वास लेने व छोड़ने में जितना समय लगे। दूसरी बार भी उतना Jain Education International For Private & Personal Use Only For www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 ... 210