Book Title: Siddhhemchandra Shabdanushasan Laghuvrutti Vivran Part 04 Author(s): Chandraguptavijay Publisher: Mokshaiklakshi PrakashanPage 13
________________ - આ ચાર સૂત્રમાં उ५२ - आ. पूर्वे सू. नं. ३-३-६, ७, ८ अने ८ आवेला अनुद्रुभे वर्त्तमाना सप्तमी पञ्चमी भने यस्तनी विभङ्गति (त्याहि विलङ्गति) ना प्रत्ययोने शित् संज्ञा थाय छे. भू धातुने वर्त्तमाना नीतिव् प्रत्ययः सप्तमी (विध्यर्थ) नो यात् प्रत्ययः पञ्चमी (आज्ञार्थ ) नो तुव् प्रत्यय ने ह्यस्तनी ( अनद्यतन भूतान ) नो दिव् प्रत्यय . तिव् यात् तुव् ने दिव् प्रत्ययने खा सूत्रधी शित् संज्ञा थवाथी ते प्रत्ययोनी पूर्वे भू घातुने 'कर्त्तर्य० ३-४-७१' थी शब् (अ) प्रत्ययाहि कार्य थवाथी अनुमे भवति भवेत् भवतु ने अभवत् खावी प्रयोग थाय छे. अहीं यात् प्रत्ययना या ने 'यः सप्तम्याः ४ -२-१२२' थी इ. आहेश थयो छे. शेष प्रक्रिया स्पष्ट छे अर्थमशः - थाय छे. थ भेजे. थाय. थयुं ॥१०॥ अद्यतनी - दि ताम् अन्; सि तम् त; अम् व म । त आताम् अन्त; थास् आधाम् ध्वम्; इ वहि महि ||३|३|११|| परस्मैपदः अन्यपुरुष : मध्यमपुरुष : उत्तमपुरुष: एताः शितः ३|३|१०॥ आत्मनेपद : अन्यपुरुष : मध्यमपुरुष :उत्तमपुरुष : एकवचन द्विवचन बहुवचन दि (द्) सि (स्) अम् त थास् इ एकवचन द्विवचन बहुवचन आताम् अन्त आथाम् ध्वम् वहि महि ho ताम् अन् तम् व ૧૦Page Navigation
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