Book Title: Siddhantasarasangrah
Author(s): Narendrasen  Maharaj, Jindas Parshwanath Phadkule
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 21
________________ ११५ (४) पृष्ठसंख्या पृष्ठसंख्या चार्वादिक अन्यमतोंका निरास विग्रहगतिमें कार्मणकाययोगका करने के लिये जीव, उपयोगमय, सविस्तर कथन १३१ कर्ता, भोक्ता आदि आधि चौरासी लक्ष योनियोंका कारोंका वर्णन कथन १३२-१३४ आत्माके अकर्तत्वमें दोषकथन ११५ सर्व संसारिजीवोंके कुल कोटियोंका आत्माके व्यापित्वका निरसन ११६ तथा उनके आयुका कथन १३४-१३६ कर्मफल-भोक्तृत्व जीवमें नहीं है ऐसे संसारिजीवोंके देहोंकी ऊंचाई कहनेवाले बौद्धमतका निराकरण ११६ तथा गर्भादि जन्मोंका वर्णन १३६-१३७ आत्मा सदामुक्त है ऐसे मार्गणाका लक्षण और उसके भेद १३७ सदाशिव मतका निरसन ११६ औदारिक पांच शरीरोंका वर्णन १३७-१३९ आत्माको मुक्तिप्राप्ति नहीं जीवोंका लिंगनिर्णय १३९ होती है ऐसा भाट्ट और अनपवायुष्क जीवोंका वर्णन १३९-१४० कौलके मतका निराकरण ११६ चौदह गुणस्थानोंका कथन १४०-१४१ मुक्तजीव सतत उर्ध्वगमन छह लेश्याओंका कथन १४२ करते हैं ऐसा कहनेवाले मण्डलीक मतका निराकरण छट्ठा परिच्छेद १४४-१५४ पञ्चप्रकार-संसारोंका वर्णन ११७-१२१ नारकियोंका आधारभूत स्थान १४४ संसारीके समनस्क अमनस्क भेद १२२ तीन वातवलयोंका विस्तार १४४ स्थावर जीवोंमें पृथिवी, नरकभूमियोंमें बिलोंकी संख्या १४५ पृथिवीकाय तथा पृथिवीका रत्नप्रभादि नरकभूमियोंकी यिकादिक तीन भेदोंका वर्णन १२२-१२३ मोटाईका कथन १४५ स्थावरोंके सूक्ष्मादि छह भेद १२३ रत्नप्रभाके खरभागादि तीन एकेन्द्रियादि जीवोंके प्राणोंका विभागोंका वर्णन १४६ वर्णन १२३-१२४ खरभाग तथा पङ्कभागमें द्रव्येन्द्रियादिके उपकारणा भवनवासी तथा व्यन्तरदेवोंके दिक भेदोंका वर्णन १२४-१२६ निवासस्थान १४६ चौदह जीवसमासोंका वर्णन १२७ अब्बहुलभागमें नरकवासोंका संज्ञी असंज्ञी जीवोंके लक्षण १२७ कथन १४६ पर्याप्त तथा अपर्याप्त जीवोंका नरकपटलोंका वर्णन १४७ कथन १२८ नारकियोंके देहोंकी ऊंचाई १४७-१४९ भव्य तथा अभव्य जीवोंका लक्षण १२९ नारकियोंके आयुका पटलोंकी नामादिक निक्षेपोंसे जीवके अपेक्षासे कथन १४९-१५० चार भेद नारकियोंकी लेश्याओंका वर्णन १५०-१५१ १30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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