Book Title: Shripal Charitra
Author(s): Nathulal Jain, Mahendrakumar Shastri
Publisher: Digambar Jain Vijaya Granth Prakashan Samiti

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Page 17
________________ ॐ नमः सिद्ध भ्यः ॐ रएमो अरह तारणम् श्री सरस्वतीदेव्यै नमः । श्री बाहबलि स्वामिने नमः । श्री परमगुरवे नमः । श्री १०८ प्राचार्य महावीर कीर्ती गरये नमः । श्री १०८ आचार्य विमल सागरगुरवे नमः । होम्बुजक्षेत्रस्थ श्री १००८ पार्श्वतीर्थकरेभ्यो नमोनमः । श्री श्रीपालचरित्रस्य हिन्दीभाषानुवादं मया (श्री १०५ ग्रा० गणिनीविजामत्या) प्रारम्यते अस्मिन् होम्बुजक्षेत्र ५-३-८६ विनाङ्क रविवासरे मध्यान्हकाले २ घण्टे समये फाल्गुनकृष्णाद्वादशीदिवसे । श्रीपाल चरित्र प्रथम परिच्छेद तत्या श्रीमज्जिनाधीशं सुराधीशाचितक्रमम् । श्रीपालचरितं वक्ष्ये सिद्धचकार्चनोत्तमम् ॥ १ ॥ अन्वयार्थ--(सुराधीशाचितम्) इन्द्रों से पूजित (क्रमम्) चरण जिनके ऐसे (श्रीमत्) अन्तरङ्ग बहिरङ्ग लक्ष्मी से सहित (जिनाधीशम्) श्री जिनेन्द्र प्रभु को (नत्वा) नमस्कार कर (सिद्धचक्रार्चनोत्तमम्) सर्वोत्तम सिद्धचक्र पूजा से सहित (श्रीपालचरितम्) श्रीपालचरित नामक ग्रन्थ-पुराण को (अहं) मैं. श्री सकलकीति प्राचार्य (वक्ष्ये) कहूंगावर्णन' करूंगा। भावार्थ-इस श्लोक में श्री आचार्य सकलकीति जी महाराज ने प्रस्तुत ग्रन्थ को लिखने की प्रतिज्ञा की है। सर्वप्रथम पुर्वाचार्यपरम्परानुसार एवं प्रार्ष पद्धति के नियमानुसार अपने कार्य की निर्विधन समाप्ति के लिये उन्होंने इष्ट देव श्री जिनेन्द्र प्रभु को नमस्कार किया है । यहाँ किसी तीर्थकर विशेष का नाम न लेने से विदित होता है कि लेखक ने समस्त अर्हत् परमेष्ठियों को नमस्कार किया है तथा श्रीपाल चरित को लिखने का दृढ़ संकल्प किया है । श्लोक के प्रारम्भ में लिखित 'ॐ' शब्द से पञ्च-परमेष्ठियों को नमस्कार किया है यह सिद्ध होता है । आगे प्रत्येक तीर्थंकर का क्रमशः नाम लेकर स्तबन किया है जो प्राचार्य की विशिष्ट अर्हद्भक्ति को दर्शाता है ।। १ ।।

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