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शिक्षाप्रद कहानिया
अब भला चींटी क्या जबाब देती। वह तो चुपचाप अपने काम में लगी रही और मेहनत करती रही। इससे रामदेव इतना तो समझ गया कि मुझे भी मेहनत करनी चाहिए और उसने मन ही मन दृढ़ संकल्प कर लिया कि मैं भी आज से खूब मेहनत करूँगा। लेकिन एक बात उसकी समझ में नहीं आई कि आखिर मैं क्या काम करूँ? और वह इसी ऊहापोह में सो गया। क्योंकि रात बहुत अधिक हो गई थी।
अगले दिन वह प्रात:काल ही आवश्यक क्रियाएं निबटाकर पुनः चींटी के पास पहुँचा और कहने लगा- चींटी-चींटी! तू मेरी गुरु है। कृपा करके बता न मैं क्या काम करूँ, जिससे कि मुझे सफलता मिले।
अब भला आप तो जानते ही हैं कि- चींटी क्या बोलती? वह अपने नन्हें से मुंह में गेहूँ का दाना उठाती और अपने निवास स्थान पर ले जाती। बार-बार वह यही करती जाती।
यह देखकर रामदेव सोचने लगा कि जरूर इसमें कोई न कोई राज है जो मेरी समझ में नहीं आ रहा है। और वह सोचने लगा। और सोचते-सोचते उसके समझ में आ गया कि मुझे भी मेहनत करके खेत में गेहूँ उगाने चाहिए।
इसके बाद रामदेव अपने घर गया। पिता के हल को उठाया और जोड़ दिया दोनों बैलों को तथा चला खेत की ओर। उसने खूब मेहनत से खेत में हल चलाया, बीज बोया, पानी दिया, रखवाली की और अन्त में फसल की कटाई की। लेकिन, जब दाने निकले तो उनकी मात्रा उसकी अपेक्षा से बहुत ही कम थी। इससे वह थोड़ा निराश भी हो गया।
अगले दिन रामदेव फिर चींटी के सम्मुख गया और बोला, चींटी-चींटी! तू मेरी गुरु है। मैंने खेत में खूब मनोयोग से मेहनत की, लेकिन मुझे अपेक्षित फल प्राप्त नहीं हुआ। बता, अब मैं क्या करूँ?
चींटी की तो अब भी वही स्थिति थी। भला वह क्या बोलती? लेकिन आज वह एक दूसरे काम में व्यस्त थी। वह अपने छोटे से मुंह