________________
158
शिक्षाप्रद कहानियां
चोर बड़े परेशान हुए कि आज हो क्या रहा है? उन्होंने तोते को पिंजरे से बाहर निकाला और फेंक दिया। तोता तो चाहता ही यही था और उड़ते ही बोला- मिल गया मुक्ति का उपाय। इस संदर्भ में कहा भी जाता है कि - झटिति पराशयवेदिनो हि विज्ञाः । अर्थात् चतुर लोग झट से दूसरे के अभिप्राय को समझ लेते हैं।
६९. स्वयं से बातचीत
व्यक्ति का जब से जन्म होता है तभी से उसमें कुछ न कुछ चिन्तन प्रारंभ हो जाता है। धीरे-धीरे जैसे ही उसकी आयु में वृद्धि होती जाती है वह इस संसार के रिश्ते-नातों के बारे में खूब आनन्द मनाता है, सांसारिक वस्तु को अपनी समझकर उसमे आसक्त हो जाता है। इन सबके अतिरिक्त उसे कुछ भी दिखाई नहीं देता है। इसी असक्ति के कारण वह अपने वास्तविक भले-बुरे को भी नहीं समझता और वास्तविकता से कोसों दूर हो जाता है। लेकिन स्वयं के वास्तविक स्वरूप का बोध नहीं करता और जन्म-जन्मांतर तक इस संसार - सागर में भ्रमण करता रहता है। जब भी कभी जीवन में कोई संकट आ जाता है तो भगवान को कोसना आरम्भ कर देता है कि- हे भगवान! तुमने यह संकट मुझे क्यों दे दिया और खूब दुःखी होता है। लेकिन उस संकट के मूल को समझने का प्रयास नहीं करता। अगर व्यक्ति कभी समय निकाल कर स्वयं से बातचीत करने का प्रयास करे तो उसे सभी संकटों का हल अपने-आप स्वयं से मिल जाए।
अब प्रश्न उत्पन्न होता है कि अपने-आप से बात कैसे की जाए? उक्त प्रश्न का समाधान बहुत ही आसान है। इसके लिए सर्वप्रथम तो भेद-विज्ञान होना बहुत आवश्यक है। भेद - विज्ञान अर्थात् यह शरीर अलग है और आत्मा अलग है। यह दोनों बिल्कुल भिन्न वस्तु हैं। जैसेरेल का इंजन और रेल के डिब्बे । और जब यह भेद - विज्ञान हो जाए तब इस प्रकार से चिंतन प्रारंभ करें
अरे आत्मन्! मैं क्या हूँ ? विचार करूँ। मैं ज्ञान - दर्शन स्वभावी आत्मा हूँ, मेरा इस जगत् की वस्तुओं से यथार्थ में कोई संबंध नहीं है।