Book Title: Shikshaprad Kahaniya
Author(s): Kuldeepkumar
Publisher: Amar Granth Publications

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Page 216
________________ 206 शिक्षाप्रद कहानिया सभासदों ने सोचा भला इस पद के लिए कौन आवेदन करेगा? ये सब बेकार की बात है लेकिन, दो-तीन दिन के अंतराल में ही कई आवेदन आ गये। राजा ने साक्षात्कार का दिन और समय निश्चित कर दिया। और राजा ने विधिपूर्वक सब काम करके एक व्यक्ति नव सृजित पद पर नियुक्त कर दिया सभा में उसकी एक कुर्सी लग गई। कार्यालय की ओर से उसे 'मूर्ख' का परिचय-पत्र भी मिल गया। अब वह भी अपने परिचय-पत्र को गले में लटका कर अपनी कुर्सी पर बैठा रहता। काम कोई उसे था नहीं बस, बीच-बीच में वह अपनी मूर्खता पूर्ण बातों से सभासदों को हँसा देता। और वे सब भी खूब खिलखिलाकर हँस देते और कहते चलो, और कुछ न सही पर यह मूर्ख सभी का मनोरंजन तो करा ही देता है। संयोगवश एक दिन राजा किसी असाध्य बीमारी के चपेट में आ गये। दूर-दूर से वैद्य बुलाये गये लेकिन कोई भी वैद्य उनका इलाज करने में सफल नहीं हो सका और अंत में सभी ने कह दिया कि अब राजा मरणासन्न हैं। यह सुनकर लोगों ने उन्हें पलंग से उतार कर नीचे जमीन पर लिटा दिया। जब यह समाचार रियासत में फैला तो सभी उनके अंतिम दर्शन करने के लिए राजमहल में आने लगे। मूर्ख ने भी यह बात सुनी और वह भी आया। और उसने राजा को देखते ही कहा'अरे! यह क्या महाराज? आप नीचे फर्श पर क्यों लेटे हुए हैं। आपको तो पलंग पर लेटना चाहिए। राजा बोला- 'अरे! शायद तुम्हें पता नहीं है। अब, मेरा परलोक गमन का समय आ गया है। ऐसी अवस्था आने पर जमीन पर ही लेटना पड़ता है। यह सुनकर मूर्ख बोला- 'अच्छा! तो आप कहीं जा रहें हैं? फिर तो आपको यात्रा के लिए बहुत सारी चीजों की आवश्यकता होगी। वो सब तैयारी हुई कि नहीं? राजा बोला- 'जहाँ मैं जा रहा हूँ वहाँ किसी चीज की जरूरत नहीं पड़ती।' और वहाँ अकेले ही जाना पड़ता है। अतः मुझे कुछ नहीं चाहिए। मूर्ख बोला- अरे! यह कैसी बात कह रहें हैं आप? भला, वहाँ अकेले आपका मन कैसे लगेगा? आप एक काम कीजिए मैं आपकी सबसे प्रिय प्राणों से भी प्यारी रानी को बुलवा देता हूँ। आप उन्हें साथ ले जाएं। वहाँ कोई तो चाहिए आपकी सेवा-सत्कार के लिए, मन

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