Book Title: Shikshaprad Kahaniya
Author(s): Kuldeepkumar
Publisher: Amar Granth Publications

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Page 224
________________ 214 शिक्षाप्रद कहानिया लगे- 'इस जाल में फंसी हुई मछलियों की गतिविधियाँ तुम सब ध्यान से देखो। शिष्यों ने देखा कि कुछ मछलियाँ ऐसी हैं जो जाल में प्राणहीन -सी निश्चल पड़ी हैं वे जाल से घूटने का कोई प्रयत्न ही नहीं कर रही हैं, जबकि कुछ मछलियाँ ऐसी हैं जो निकलने का भरसक प्रयत्न कर रहीं हैं, लेकिन, वे जाल से निकलने में सफल नहीं हो पा रही हैं। और कुछ ऐसी मछलियाँ है जो जाल से मुक्त होकर पुनः जल में खेलने में मग्न हैं। शिष्य मछलियों का यह अद्भुत नजारा देखते-देखते काफी आगे निकल गए, लेकिन, परमहंस वहीं खड़े रहे और देखते रहे मछलियों की गतिविधियों को। कुछ ही देर बाद जब उन्हें शिष्यों का ध्यान आया तो उन्होंने जोर से आवाज लगाकर उन सबको अपने पास बुला लिया। जब शिष्य आ गए तो उन्होंने कहा- 'जिस प्रकार तुम्हें यहाँ मछलियाँ तीन प्रकार की दिखाई दे रही हैं, वैसे ही अधिकतर मनुष्य भी तीन प्रकार के होते हैं।' एक श्रेणी उन मनुष्यों की होती है, जिनकी आत्मा ने बंधन को स्वीकार कर लिया है। अब वे भवसागर रूपी जाल से पार होने की बात ही नहीं सोचते। दूसरी श्रेणी ऐसे व्यक्तियों की है जो वीरों की तरह प्रयत्न तो करते हैं, पर मुक्ति से वंचित रहते हैं। तीसरी श्रेणी उन लोगों की है जो प्रयत्न द्वारा एक-न-एक दिन मुक्ति पा ही लेते हैं। लेकिन इन दोनों में एक श्रेणी और होती है जो स्वयं को बचाये रहती है। तभी एक शिष्य ने प्रश्न किया, 'गुरुदेव वह श्रेणी कैसी होती है? परमहंस देव बोले- 'हाँ, वह बड़ी महत्त्वपूर्ण श्रेणी होती है। इस श्रेणी के मनुष्य जल में कमल की तरह उन मछलियों जैसे होते हैं जो जाल के पास आती ही नहीं। और जब वे पास ही नहीं आती, तो फँसने का प्रश्न ही नहीं उठता। परमहंस देव की बात सुनकर सभी शिष्य गदगद हो गये और खुशी-खुशी गुरुजी के साथ आश्रम की ओर लौट गए।

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