Book Title: Shikshaprad Kahaniya
Author(s): Kuldeepkumar
Publisher: Amar Granth Publications

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Page 219
________________ 209 शिक्षाप्रद कहानिया आश्चर्य की बात है। उनके स्थान पर अगर मैं होता तो ऐसा विकट से विकट स्थिति आने पर भी नहीं करता। किसी तरह यह बात नारायण श्रीकृष्ण को ज्ञात हुई। वे भीम के पास आये और बोले- आज रात्रि को राजमहल के सामने वाले वटवृक्ष पर छिपकर बैठना और जो कुछ दिखायी दे उसे मौनपूर्वक देखते रहना, लेकिन, घबराना बिल्कुल नहीं, डरना नहीं।' यह सुनकर भीम बोला- हे वासुदेव! 'आप कैसी बात कर रहे हो? आप मुझ जैसे महापराक्रमी को जिसके नाम के श्रवण मात्र से कौरवों की विशाल सेना में हा-हाकार मच जाता है, उससे डरने की बात कर रहे हो! भीम की ये अहंकार भरी बातें सुनकर श्रीकृष्ण मुस्कुराते हुए वहाँ से चले गए। रात्रि को भीम वटवृक्ष पर जा बैठा। मध्य रात्रि के बाद उसे वहाँ विचित्र एवं नए-नए चमत्कार दिखायी देने लगे। एक तेजस्वी व्यक्ति आया और उसने सामने की भूमि को स्वच्छ किया। फिर वरुणदेव ने उस पर जल छिड़का। विश्वकर्मा के कारीगरों ने आकर मण्डप और सिंहासनों की व्यवस्था कर उन्हें सुसज्जित किया। धीरे-धीरे करके एक-एक द्वारपाल उपस्थित हुए फिर शुक्र, वामदेव, व्यास, नारद, इन्द्रादि देवों का आगमन हुआ और वे सब यथाक्रम अपने-अपने आसन पर विराजमान हो गये। इतने में ही उसे चारों पाण्डव भी वहाँ आते हुए दिखाई दिए और उन्होंने भी वहाँ आसन ग्रहण किया। भीम यह देखकर चकित हुआ कि इन सबके आसन ग्रहण करने के पश्चात् राजसिंहासन अब भी खाली है और इतने में ही उसे एक तेजस्वी नारी आती दिखाई दी। उसे देखते ही सारे देवता, ऋषि-मुनि और वहाँ उपस्थित सभी लोग उसके सम्मान में खड़े हो गये। उस स्त्री के केश खुले हुए थे और भूमि को स्पर्श कर रहे थे। उसके हाथों में त्रिशुल, फरसा, तलवार आदि शस्त्र थे और उसने सिर पर मुकुट धारण किया था उसके सिंहासन पर बैठते ही वहाँ उपस्थित सभी ने जय-जयकार किया। भीम ने मन ही मन सोचा कि शायद यह स्त्री महामाया है। लेकिन, जब उसने सूक्ष्मता से निरीक्षण किया तो उसे स्पष्ट ज्ञात हो गया कि वह स्त्री और कोई नहीं, वरन द्रौपदी ही है।

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