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शिक्षाप्रद कहानिया
191 किसान बोला- धन्यवाद। 'तुम तो वास्तव में एक कुशल कर्मचारी हो। अब तुम एक काम करो पहले शहर जाओ और एक हजार फिट लम्बी एक लोहे की चेन लाओ, फिर एक हजार फिट लोहे का खंभा लाओ। फिर उस खंभे को जमीन में गाडो। तत्पश्चात् चेन का एक सिरा खम्भे में बाँधो और दूसरा सिरा अपने गले में बाँधों और जब जक मैं तुम्हें न बुलाऊँ तब तक तुम उस खंभे पर चढ़ो-उतरो, चढ़ो-उतरो बस यही काम है तुम्हारा।' 'जिन' ने वैसा ही किया। अब जब भी किसान को कोई काम करवाना होता तो वह उससे करा लेता और बाकी समय में उसे फिर लगा देता खंभे पर चढ़ने-उतरने के लिए। अब किसान भी खुश और 'जिन' महाराज भी मस्त। ।
मित्रों! ये कहानी किसी और की नहीं अपितु, हम सबकी है। वह 'जिन' कोई और नहीं बल्कि हम सबका मन ही वह 'जिन' है, जो खाली होते ही उट-पटाँग करने की सोचने लगता है।
__ अतः हम सबको प्रयत्न करना चाहिए की जहाँ तक हो सके। अपने मन को अच्छे कामों में लगा कर रखना चाहिए वरना, यह हमको ही खाने लगता है। कहा भी जाता है कि- 'व्यस्त जीवन स्वस्थ जीवन।' यह मन ही हमारा शत्रु होता है जब हम बुरे काम करते हैं और यह मन ही हमारा मित्र होता है, जब हम अच्छे काम करते हैं। और यह एक विचित्र संयोग है कि अच्छा भी यही कराता है और बुरा भी। और यह निर्भर करता है हमारी बुद्धि पर, हमारे विवेक पर कि हम अच्छा करें या बुरा करें। इसलिए स्पष्ट कहा जाता है कि- मन एव कारणं मुनष्याणां बन्धमोक्षयोः।
९०. तेरा साईं तुझमें भगवान् की तलाश हम सबको रहती है। और उन्हें ढूँढने का हर सम्भव प्रयास हम सभी करते हैं। उन्हें ढूँढ़ने हम मन्दिरों मे जाते हैं, मस्जिदों, गिरजाघरों में जाते हैं, गुरुद्वारों में जाते हैं, अनेक तीर्थयात्राएं करते हैं। वहाँ जाते हैं जहाँ भगवान् का जन्म हुआ था, वहाँ जाते हैं जहाँ