Book Title: Shikshaprad Kahaniya
Author(s): Kuldeepkumar
Publisher: Amar Granth Publications

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Page 204
________________ 194 शिक्षाप्रद कहानिया शंख बड़े जोर से बजा दिया। इससे श्रुतायुध चिढ़ गया और क्रोधवश बदला लेने के लिए उसने नीचे पड़ी हुई अपनी गदा श्रीकृष्ण के ऊपर फेंक दी। क्रोध और अहंकार वश उस समय श्रुतायुध को अपने पिता की आधी बात याद रही- 'इसका निशाना अचूक है और इसका प्रहार कभी व्यर्थ नहीं जाता।' उसे पूरा विश्वास था कि गदा का प्रहार करके वह श्रीकृष्ण से अपना मजाक उड़ाने का बदला ले लेगा और श्रीकृष्ण को चकनाचूर कर देगा। किंतु उसे अपने पिता के वचन का शेष भाग स्मरण नहीं रहा जिसमें उन्होंने कहा था- 'लेकिन यदि किसी निर्बल निहत्थे या निर्दोष मनुष्य को मारा जाए तो वह उलट कर चलाने वाले को ही मार डालती है।' इस युद्ध में श्रीकृष्ण तो केवल अर्जुन के सारथी थे और उन्होंने इस धर्म युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की हुई थी। अतः निहत्थे श्रीकृष्ण पर गदा चलाने का वही हस्र हुआ जो उसके पिता ने उससे कहा था। वह गदा लौटकर श्रुतायुध के सिर पर इतने जोर से गिरी कि वह वहीं पर ढेर हो गया। यह कहानी हमें यह शिक्षा देती है कि हमें अपने बल और बुद्धि का प्रयोग असहाय और पीड़ितों की सहायता के लिए करना चाहिए न कि अपने अहंकार को पुष्ट करने के लिए और जो कोई भी निर्बल और असहायों को सताता है या मारता है प्रकृति का न्याय एक दिन उसी को नष्ट कर देता है। भले ही वह कुछ समय के लिए खुश क्यों न हो ले अर्थात् प्रकृति के न्याय से कोई बच नहीं सकता है। यह कहानी केवल एक श्रुतायुध की नहीं है, अपितु करोड़ों-अरबों श्रुतायुधों की है। जिसमें हम सभी शामिल हैं। छोटे-छोटे अहंकारों अथवा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए भला हम क्या- कुछ नहीं कर देते यह सोचने का विषय है। अतः वास्तविक बल वही होता है, जो असहाय और पीड़ितों के काम आए। कहा भी जाता है कि

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