Book Title: Shikshaprad Kahaniya
Author(s): Kuldeepkumar
Publisher: Amar Granth Publications

View full book text
Previous | Next

Page 202
________________ 192 शिक्षाप्रद कहानिया भगवान् विश्राम करते थे। लेकिन बड़े ही आश्चर्य की बात है कि वहाँ जाने का कोई प्रयास नहीं करता या कोई विरला व्यक्ति ही करता है जहाँ साक्षात् भगवान् विराजमान हैं, वहाँ जाने के लिए शायद ही कोई विरला व्यक्ति तैयार भी हो पाता है। हमारा असली भगवान् तो हमारे अंदर ही मौजूद है, जो जड़ नहीं अपितु चेतन है। जीता-जागता है। उसको कही बाहर ढूँढ़ने की आवश्यकता ही नहीं है, वे तो हर पल हमारे साथ रहते हैं। अतः हम सबको उन भगवान् के दर्शन करने चाहिए जो प्रत्येक क्षण हमारे साथ मौजूद हैं। और वह भगवान् हैं- स्वयं की आत्मा अर्थात् निजात्मा। वह असली तीर्थ है। और वह तीर्थ हम सबके अंदर ही है। कहीं बाहर जाने की या ढूँढने की जरूरत ही नहीं है। और बाहर भी जाओ इसका कोई निषेध नहीं है, जरूर जाओ। लेकिन कहीं ऐसा नहीं हो जाए कि इस बाहर के चक्कर मे अंदर को भूल जाओ। कहीं 'मूल की ही भूल' न हो जाए। और यह तो हम सभी भली-भाँति जानते हैं कि 'मूल की भूल' का फल क्या होता है? और जब मूल ही हाथ नहीं आया तो सारा परिश्रम व्यर्थ है। अतः हम सबको अपने ज्ञानरूपी चक्षु को खोलना चाहिए और अपने अंदर झाँकने का प्रयत्न करना चाहिए। जिससे हमें अपने अंदर विराजमान् आत्मस्वरूप भगवान् के दर्शन हो सकें तथा परमानन्द की प्राप्ति हो सके। आत्मानुभव के बिना वास्तविकता का ज्ञान कभी नहीं हो सकता है। और यह भी एक वास्तविक सत्य है कि व्यक्ति हर जगह ढूँढता है, लेकिन अपने अंदर नहीं ढूँढ़ता। कहा भी जाता है कि खुद को खुद ही में ढूँढ़, खुदी को तू दे निकाल। फिर तू ही खुद कहेगा, खुदा हो गया हूँ मैं। ९१. वास्तविक बल महाभारत के समय में एक बड़ा वीर योद्धा था श्रुतायुध। उसके पिता का नाम वरुण था। एक बार वृद्धावस्था आ जाने के बाद वरुण एक ऐसे असाध्य रोग की चपेट में आ गया कि उसके प्राण बचने मुश्किल थे। अतः अब

Loading...

Page Navigation
1 ... 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224