Book Title: Shikshaprad Kahaniya
Author(s): Kuldeepkumar
Publisher: Amar Granth Publications

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Page 198
________________ 188 शिक्षाप्रद कहानिया यह सुनते ही भगवान् बोले- 'तथास्तु! और अन्तर्धान हो गए। अब उनके स्थान पर वहाँ एक हट्ठा-कट्ठा 'जिन' खड़ा था। वह किसान से बोला- 'मैं आपकी सेवा में उपस्थित हूँ। आप जो भी काम कहेंगे मैं उसे अवश्य करूँगा। आपकी आज्ञा मेरे लिए शिरोधार्य है। लेकिन, मेरी एक शर्त है कि मैं खाली नहीं रह सकता। हाँ आप इस बात का ध्यान अवश्य रखना कि अगर, मैं खाली रहा, मुझे कोई भी काम नहीं मिला तो मैं तुम्हें ही खा जाऊँगा। बाकि मेरे लिए आपको कोई चिंता नहीं करनी कि क्या खाएगा, क्या पीएगा, कहाँ रहेगा, क्या पहनेगा? टाइप की। उसकी ये सब बातें सुनकर किसान मन ही मन मुस्कराते हुए सोचने लगा कि मूर्ख है शायद, इसे पता ही नहीं है कि मेरे पास कितना काम है। इसे साँस लेने तक कि फुर्सत नहीं मिलेगी। किसान ये सब सोच ही रहा था कि 'जिन' बोला- अब आप देर मत करिए और मुझे फटाफट मेरा काम बताइए। मेरी ड्यूटी शुरू हो गई है। किसान अमिताभ स्टाइल में बोला- 'ठीक है आपका समय शुरू होता है अब।' सबसे पहले तुम जाओ और मेरे सारे खेतों के चारों और बाड़ लगाकर आओ जिससे खेतों मे जंगली जानवर न घुस सकें। इतना सुनते ही 'जिन' बोला- 'जैसी आपकी आज्ञा मेरे आका।' और चला गया खेतों की ओर। किसान सोचने लगा अब मुझे आराम मिलेगा। मैं सारे काम इस 'जिन' से करवाऊँगा और खुद चैन की बंसी बजाऊँगा। लेकिन, यह क्या 'जिन' तो पलभर में ही वापस आ गया। किसान सोचने लगा कि वैसे ही डींगे हाँक रहा था। इसके बस की नहीं हैं खेती का काम शायद भगवान् ने किसी गलत आदमी को भेज दिया है। _ 'जिन' बोला- 'आपकी आज्ञा का पालन हुआ मेरे आका। आप चाहे तो जाकर निरीक्षण कर सकते हैं। मैंने सारे खेतों में बाड़ लगा दी है। अब मुझे आप मेरा अगला काम बताओ वरना मैं आपको खा जाऊँगा।' किसान घबराते बोला- 'अच्छा, अब तुम जाओ और खेतों के चारों ओर 100-100 फुट गहरे कुए खोदो। जिससे खेतों में सिंचाई करने

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