Book Title: Shikshaprad Kahaniya
Author(s): Kuldeepkumar
Publisher: Amar Granth Publications

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Page 173
________________ शिक्षाप्रद कहानिया 163 भीलों ने राजा को पुरोहित के सामने पेश करके कहा- लीजिए पुरोहित जी! बलि के लिए व्यक्ति उपस्थित है। पुरोहित ने कहा- बलि से पहले जाँच की जाएगी कि इनके शरीर का कोई अंग खराब तो नहीं है। जब जाँच हुई तो उनकी अंगुली कटी हुई थी। यह देखकर पुरोहित ने कहा कि इनकी बलि नहीं दी जा सकती क्योंकि ऐसा विधान है कि अंग-भंग व्यक्ति की बलि नहीं दी जा सकती। अब राजा की जान में जान आयी और उसने अपने मंत्री द्वारा कही गयी बात को मन ही मन याद किया कि उसने ठीक ही कहा था- जो होता है, वह अच्छा ही होता है। ७३. संयम एक सेठ था। उसके यहाँ पुत्र की शादी का अवसर आया। उसने हलवाई को मिठाई आदि पकवान बनाने के लिए बुलाया। हलवाई ने सोचा कि सेठ जी के यहाँ बहुत से लोग आएंगे, पता नहीं बाद में मुझे कुछ खाने को या न मिले इसलिए वह एक लड्डू बनाकर थाली में रखता और दूसरा अपने मुँह में रखता। इस प्रकार न जाने वह कितने लड्डू पेट में डाल गया। जब उसका पेट खूब भर गया तो धड़ाम से नीचे गिर गया। वहाँ उपस्थित लोगों ने तुरन्त वैद्य को बुलाया कि कहीं कोई अनहोनी घटना न घट जाए। वैद्य आया, बोला- घबराने की कोई बात नहीं, एक सरसों के दाने के बराबर एक गोली बना दी और उस हलवाई से कहा कि इसे खा जाओ, ठीक हो जाओगे। इस पर वह हँसने लगा। वैद्य बोला- क्यो हँस रहे हो? वह बोला, 'यदि इतनी जगह मेरे पेट में बची होती तो मैं और एक लड्डू खा जाता।' देखिए इस व्यक्ति को- मरने जा रहा है फिर भी लड्डू खाने की इच्छा हो रही है। ७४. तुम मुझे नक्कटा कहते! प्राचीन समय की बात है। दक्षिण भारत के एक गाँव में एक बहुत बड़े महलनुमा घर में एक सेठ-सेठानी रहते थे। एक दिन रात के

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