Book Title: Shikshaprad Kahaniya
Author(s): Kuldeepkumar
Publisher: Amar Granth Publications

View full book text
Previous | Next

Page 186
________________ 176 शिक्षाप्रद कहानिया वे बंगाल के प्रसिद्ध महापुरुष एवं प्रकांड विद्वान् ईश्वरचन्द्र विद्यासागर हैं।' इतना सुनते ही युवक उनके चरणों पर गिर पड़ा और बार-बार क्षमा याचना करने लगा। ईश्वरचन्द्रजी ने उसे उठाया और गले लगाते हुए कहा- 'इसमें क्षमा माँगने की कोई बात नहीं है। हम सब भारतवासी है। हमारा देश अभी गरीब है। अतः हम सबको अपना काम स्वयं करते हुए स्वावलंबी बनना चाहिए तथा अपना काम करने में शर्म नहीं करनी चाहिए।' ८५. दानवीर कर्ण द्वापर युग में महाभारत के समय में एक भाट दुर्योधन के द्वार पर जाकर उनका यशोगान करने लगा। दुर्योधन ने सुवर्णादि अमूल्य वस्तुएँ देते हुए उसका यथोचित आदर सत्कार किया और बोला- 'तुमने कर्ण की दानवीरता के किस्से बहुत सुने होंगे। लेकिन, तुम्हे मालूम है कि मैं कर्ण से भी बड़ा दानवीर हूँ, और हाँ तुम्हें नहीं पता तो आज से यह बात अच्छी तरह से समझ लो, आज से मेरा ही गुणगान किया करो।' जब यह बात भगवान् विष्णु को मालूम हुई तो उन्होंने मन ही मन सोचा कि क्यो न दुर्योधन की परीक्षा ले ली जाए उन्होंने एक बुढ़े ब्राह्मण का वेश धारण किया और दुर्योधन के द्वार पर पहुँच गए दान माँगने। दुर्योधन ने मान-सम्मान पूर्वक ब्राह्मण को आसन पर बिठाते हुए हाथ जोड़कर विनम्रता पूर्वक कहा- 'बताइए ब्राह्मण देवता! कैसे आना हुआ? मैं आपकी क्या सेवा करूँ?' __यह सुनकर ब्राह्मण देवता बोले- हे राजन्! न मुझे अन्न चाहिए, न जल चाहिए, न सोना-चाँदी चाहिए, बस मैं तो अपने माता-पिता का क्रियाकर्म करने द्वारका जाना चाहता हूँ जिससे उन्हें सद्गति मिले। लेकिन, वृद्धावस्था और शरीर की दुर्बलता के कारण मैं चलने-फिरने में असमर्थ हूँ। इसलिए यदि आप मेरा बुढ़ापा लेकर अपना यौवन (जवानी) दे सको, तो इस ब्राह्मण पर बड़ा उपकार हो, और हाँ जैसे ही मैं अपने माता-पिता का क्रियाकर्म करके लौटूंगा उसी क्षण मैं आपको आपका

Loading...

Page Navigation
1 ... 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224