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शिक्षाप्रद कहानिया फिर वह वैद्य जी की ओर घुमकर बोला- 'हे प्राणरक्षक! आप भी दवाई पीकर या खाकर अपनी भूख क्यों नहीं शांत कर लेते?'
फिर वह चित्रकार से बोला- 'आप भी बढ़िया से बढ़िया चित्र खाइए और अपनी उदर वेदना को शांत कीजिए। देर किस बात की।'
ये सब बातें सुनकर तीनों अतिथि स्वयं को अपमानित हुआ जानकर क्रोधित होते हुए बोले- 'तुम्हारे घर में जो भी कुछ थोड़ा-बहुत बना हो वह खिलाना है तो खिला दो। वरना, हम जा रहें हैं और हाँ सुनो, तुमने हमारे साथ अच्छा नहीं किया।
इतना सुनना था कि पहलवान ने आव देखा न ताँव लगा एक-एक को पकड़कर पटकनी देने। तीनों धरती पर लुढ़कते थे और चिल्लाते जाते थे। 'अब इसकी क्या जरूरत थी।'
पहलवान कहता जाता था- 'मैं पहलवान हूँ। मेरा काम कुश्ती लड़ना और पटकनियाँ देना है। मैं दूसरों से कुश्ती लड़ने के हजारों रुपये लेता हूँ। लेकिन, तुम्हें अपना पड़ोसी समझकर फ्री-फण्ड में ही पटकनियाँ दे रहा हूँ। इसलिए तुम मेरी पटकियों की कीमत नहीं जानते। लगता है, तुम तीनों महामूर्ख हो। हजारों रूपये की पटकियाँ छोड़कर दस-बीस रूपए का भोजन माँग रहे हो।
पहलवान के शिष्य पीछे खड़े यह सब तमाशा देखकर हँसते-हँसते लोट-पोट हो रहे थे।
जब अच्छी खासी पटकियाँ खा ली तो तीनों को कुछ होश आया और अपनी गलती का अहसास भी हो गया। तीनों कहने लगेहमसे बहुत बड़ी भूल हो गयी।
'हमने दूसरे के दु:ख को अपने दुःख जैसा नहीं समझा।' 'हमने अपने और पराये में भेद समझा।' 'हमने उस गरीब आदमी से अच्छा बर्ताव नहीं किया।'
यह सुनकर पहलवान बोला- हम सबको दूसरे प्राणियों के साथ अपनापन बर्तना चाहिए। जैसा कष्ट हमें होता है, वैसा ही कष्ट उन्हें भी