Book Title: Shikshaprad Kahaniya
Author(s): Kuldeepkumar
Publisher: Amar Granth Publications

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Page 190
________________ 180 शिक्षाप्रद कहानिया ___ गृहस्थ बोला- 'आप तो अभी थोड़ी देर पहले कह रहे थे कि मुझे लोगों के प्रति इतनी सहानुभूति है कि मैं उनके लिए नरक में भी जाने को तैयार रहता हूँ। फिर आपने जरूरतमंद की जरूरत पूरी करने के लिए पहल क्यों की? जबकि होना यह चाहिए था कि आप पहले दूसरों को मौका देते। जिससे वे उसकी माँगों को पूरा करते और पुण्य के अधिकारी बनते। अगर वे ऐसा नहीं करते तो एक बार सोचा जा सकता था कि वह काम आप स्वयं करें। इतना सुनते ही साधु को सारी बात समझ में आ गई और उन्होंने उस गृहस्थ से क्षमा माँगते हुए विनम्रतापूर्वक कहा- 'धन्य हैं आप और आपका ज्ञान। मैं साधु होते हुए भी जिस बात को आज तक समझ नहीं सका, वह बात आपने मुझको चुटकियों मे समझा दी।' इसीलिए कहा भी जाता है कि गृहस्थो मोक्षमार्गस्थो निर्मोहो नैव मोहवान्। अनगारो गृही श्रेयान् निर्मोहो मोहिनो मुनेः॥ ८७. जैसी करनी वैसी भरनी श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्। आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्॥ अर्थात् सभी धर्मों के सार को सुनो और उसको अपने जीवन में धारण करो कि सभी धर्मों का सार यह है कि जो बात या क्रिया आपको अपने लिए अच्छी नहीं लगती वह आप दूसरों के लिए मत करिए। जैसे आप नहीं चाहते कि कोई आपको गाली बके, मारे, दुर्व्यवहार करे तो आप भी किसी से ऐसा व्यवहार न करें। उक्त श्लोक की दूसरी पंक्ति अत्यंत ही मार्मिक एवं जीवन जीने की कला सिखाने वाली है जिसे हम सबको अपने जीवन में उतारना चाहिए। कहा भी जाता है कि महादुःख पाता है वह, जो औरों को दुःख देता है। महासुख पाता है वह, जो औरों को सुख देता है।

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