Book Title: Shikshaprad Kahaniya
Author(s): Kuldeepkumar
Publisher: Amar Granth Publications

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Page 187
________________ शिक्षाप्रद कहानियां 177 यौवन लौटा दूँगा। हो सकता है उस काल में ऐसी व्यवस्था संभव हो कि जवानी और बुढ़ापे का आदान-प्रदान हो जाता हो। क्योंकि इस सृष्टि में कुछ भी सम्भव है। यह अद्भुत माँग सुनकर दुर्योधन आश्र्चय चकित होते हुए बोला- ‘हे विप्रश्रेष्ठ! आप यौवन के स्थान पर और कुछ भी माँगिए, मैं सहर्ष देने को तैयार हूँ। ' यह सुनकर ब्राह्मण देवता बोले- ' और कुछ की मुझे आवश्यकता ही नहीं है। यह तो मैं पहले ही आपसे निवेदन कर चुका हूँ, मुझे तो बस यौवन की ही आवश्यकता है।' यह सुनकर दुर्योधन बोला- 'तब आप ठहरिये मैं Head of the Department अर्थात् अपनी पत्नी से पूछकर आता हूँ। वह अन्तुःपुर में गया और श्रीमती को सारी बात बताई। यह सुनकर पत्नी बोली- 'अरे! ये आप क्या कह रहे हैं? जब आप में जवानी ही नहीं रहेगी तो भला, आप किस काम के रहेंगे, कौन आपकी देखभाल करेगा। मैं तो दिनरात आपकी सेवा कदापि नहीं कर सकती। और हाँ क्या भरोसा उस ब्राह्मण देवता का कि वो आपका यौवन लौटाये भी या नहीं। अतः मैं आपको कभी इसकी अनुमति ( Permisson) नहीं दूँगी । ' दुर्योधन बाहर आकर बोला- 'हे विद्याश्रेष्ठ ! मेरी पत्नी ने यौवन देने से मना कर दिया है, अतः मैं आपकी कोई मदद इस संदर्भ में नहीं कर सकता। विप्रदेवता मन ही मन उसे धिक्कारते हुए कर्ण के पास गए। कर्ण ने भी उसी प्रकार उनका यथोचित आदर-सत्कार किया और पधारने का कारण पूछा। ब्राह्मण देवता ने अपनी इच्छा बता दी। यह सुनते ही कर्ण गद्गद् होकर बोला- 'विप्रदेवता! यह भी कोई बड़ी बात है! यदि आप मेरा सारा शरीर भी सदा के लिए माँगे तो मैं खुशी-खुशी आपको दे दूँगा। मेरा तो जीवन ही सार्थक हो जाएगा। अतिथि सेवा के लिए तो पशु-पक्षी तक इस नश्वर शरीर का बलिदान कर देते हैं। फिर आप तो कुछ ही दिन के लिए मेरा यौवन माँग रहे हैं।' यह सुनकर ब्राह्मण देवता बोले- 'वह सब तो ठीक है, लेकिन तुम्हारे यौवन पर तो तुम्हारी पत्नी का अधिकार है, इसलिए उनकी

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