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शिक्षाप्रद कहानिया ने सोचा यह उपहास (मजाक) कर रहा है, अतः कह दिया- छोड़ जाओ। कुम्हार गधे को छोड़कर चला गया और गुरुजी शिष्यों को पढ़ाने में व्यस्त हो गए। गधा इधर-उधर वन में निकल गया।
एक वर्ष बाद कुम्हार गुरुजी के पास आकर बोला- गुरुजी! अब तक तो मेरा गधा आदमी बन गया होगा, अतः अब आप मुझे उसे लौटा दें।
गुरु जी बोले- अरे! वह गधा तो बहुत बड़ा वकील बन गया और कचहरी के केबिन नं. 10 में बैठा है। तथा अब उसका नाम हीरालाल है।
कुम्हार तुरंत कचहरी के केबिन नं. 10 पर पहुँच गया। वहाँ बाहर वकील साहब का सेवक बैठा था। उसने कुम्हार को अंदर जाने से रोका तो कुम्हार कहने लगा- अरे! तू जानता नहीं मैं कौन हूँ, मैं इसका मालिक हूँ, ये मेरा गधा है। सेवक को बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने अंदर जाकर वकील साहब को सारी बात बतलाई। वकील साहब बोलेउसको अंदर भेजो।
कुम्हार जैसे ही अंदर घुसा, उसने घुसते ही वकील साहब को अपनी बाँहों में भर लिया और कहने लगा- अरे मेरे गधे! तू तो बहुत बड़ा आदमी बन गया है। मुझे पहचानता है कि नहीं? वकील साहब को आया गुस्सा, उन्होंने कुम्हार को जोर से लात मारी और दूर कर दिया।
यह देखकर कुम्हार कहने लगा- भाई हीरालाल! चाहे त् कितना ही बड़ा आदमी बन गया, लेकिन तेरी लात मारने की आदत अब भी नहीं गई।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि व्यक्ति के बचपन के संस्कारों का छूटना बहुत ही कठिन काम है। जन्म-जन्मान्तरों के राग-द्वेष के संस्कारों का छूटना तो और भी कठिन है।
८१. उलटवासी विद्युत के आविष्कार ने विश्व के विकास में हमें महत्त्वपूर्ण योगदान किया है, हम सभी के जीवन में उसकी असाधारण भूमिका है