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शिक्षाप्रद कहानियां बालक चल दिया बाजार की ओर। रास्ते में उसे कुछ ऐसे बालक दिखाई दिए, जिनके शरीर पर पूरे वस्त्र तक नहीं थे उनके दीन-हीन चेहरों से स्पष्ट झलक रहा था कि उन्हें कई दिनों से शायद भोजन ही न मिला हो। यह देख करके बालक का हृदय द्रवित हो उठा और उसने सारे पैसे उन बालकों में बाँट दिए। इससे उसे अत्यन्त सुख और आत्मसन्तोष की अनुभूति हुई और चल दिया वापस घर की ओर ।
घर पहुँचते ही पिता ने बालक से पूछा - ' फल ले आए बेटा । ' उसने उत्तर दिया, ‘पिताजी, आज तो मैं अमरफल लाया हूँ।'
यह सुनकर पिताजी बोले- 'दिखा तो भला । मैं भी देखूँ तुम कौन-सा अमरफल लाए हो । '
बालक बोला- 'पिताजी, बात यह है कि जब मैं बाजार जा रहा था तो रास्ते में मुझे कुछ ऐसे गरीब बच्चे मिले, जिनके शरीर पर वस्त्र तक नहीं थे। उन्हें देखकर मेरा हृदय द्रवित हो उठा और मुझे उन पर इतनी दया आ गई कि वे सारे पैसे मैने उन सब में बाँट डाले। अगर मैं अपने लिए फल लाया होता, तो शायद उनकी मिठास दो-चार दिनों तक रहती। किन्तु उससे मुझे 'अमरफल प्राप्त न हुआ होता।' पिताजी भी यह सुनकर भावविभोर हो गए। और अत्यन्त प्रसन्न होते हुए उन्होंने बेटे को शाबासी देते हुए उसकी पीठ थपथपाई।
यही बालक आगे चलकर 'सन्त रंगदास' के नाम से विश्वविख्यात
हुआ।
३९. सच्ची सीख
बालक हरिदास का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था लेकिन, वे बचपन से ही पढ़ने-लिखने में बड़े निपुण थे। कक्षा में हमेशा प्रथम स्थान पर आते थे। इसके कारण उसके गुरु जी भी उससे अतीव प्रसन्न रहते थे। और यथासम्भव उसको उत्तम शिक्षा देने के लिए प्रयासरत् रहते
थे।