________________
शिक्षाप्रद कहानिया
87 एक दिन हरिदास गुरु के पास आए और बोले- 'गुरु जी! रामदास मुझसे ईर्ष्या करता है' रामदास उसी का सहपाठी था। पढ़ने में वह भी दक्ष था। वह कभी-कभी हरिदास के प्रश्नों के भी उत्तर दे देता था। इससे उसको लगता था कि वह उससे ईर्ष्या करता है।
गुरु जी ने जब यह सुना तो वे मन ही मन कुछ सोचकर बोले'अच्छा! मान लिया कि रामदास तुमसे ईर्ष्या करता है, इसलिए तू पीठ के पीछे उसकी निन्दा कर रहा है। तू अपनी तरफ क्यों नहीं देखता कि तू भी उससे जलने लगा है? पीठ पीछे किसी की निन्दा करना तेरी दृष्टि में अच्छा काम है क्या? अगर उसने गलत मार्ग अपनाया है तो क्या तुम भी गलत मार्ग अपनाओगे? इसलिए पहले तुम आत्मचिन्तन करो कि कहीं तुम भी तो बुराई के मार्ग पर नहीं चल रहे हो?'
यह बात हरिदास के समझ में आ गई। और उसने उसी क्षण दृढ़ संकल्प किया कि आज के बाद किसी की बुराई नहीं करेगा।
हरिदास की समझ में तो यह बात आ गई। लेकिन, मैं समझता हूँ कि उक्त समस्या एक हरिदास की नहीं है, अपितु हम सब हरिदासों की है। हम सबका भी कहीं न कहीं यही हाल है। हमें दूसरों की तिल मात्र बुराई तो तुरन्त दिखाई दे जाती है। लेकिन, स्वयं की पहाड़ जैसी बुराई दिखाई नहीं देती।
अतः हम सबको इस पर चिन्तन करना चाहिए जिससे हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी भी स्वर्ग बन जाएगी। इसलिए कहा भी गया है कि'कृपया ईर्ष्या की आग को बुझा दीजिए, नहीं तो यह जहाँ-जहाँ जाएगी, वहाँ का कोना-कोना नरक बना डालेगी।'
४०. महान् शत्रु क्रोध-मान-माया-लोभ-भय-जुगुप्सा-राग-द्वेष-जिद्द-शोक-ईष्यादि ये कुछ ऐसे शब्द हैं जोकि अत्यन्त खतरनाक हैं। खतरनाक ही नहीं अपितु यह कहा, जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि ये व्यक्ति के