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शिक्षाप्रद कहानिया ही चाहे वहाँ सोने-चाँदी और धन की वर्षा ही क्यों न होती हो। अगर वहाँ घोंसला बनाना है तो पहले यह देखो कि वहाँ कोई अपना हितैषी भी है या नहीं। और अगर नहीं है तो पहले वहाँ अपना हितैषी बनाओ।
कबूतर की समझ में यह बात आ गई कि हमें अपने बड़े-बुजुर्गों की बात अवश्य माननी चाहिए। और वह निकल पड़ा मित्र की तलाश
में।
खण्डहर के पास ही एक फूलों से लदा हुआ बड़ा ही सुन्दर बगीचा था। तभी उसकी नजर पड़ी कि कुछ मधुमक्खियाँ गुलाब की फुलवारी का रास्ता भूल गई हैं और बबूलों पर भटक रही हैं। कबूतर ने बिना समय बर्बाद किए तुरन्त उन्हें फुलवारी का रास्ता बतलाया तो मधुमक्खियाँ भी तुरन्त एक स्वर में बोली- 'जो मुसीबत में काम आए उसे ही सच्चा मित्र कहते हैं।' इसलिए हे कबूतर! आज से तुम हमारे प्रिय मित्र हो। यदि भविष्य में कहीं भी, कभी भी आपको हमारी आवश्यकता पड़े तो हमें अवश्य याद करना। हम तुरन्त दौड़ी चली आएंगी।
यह सुनकर कबूतर अत्यन्त प्रसन्न हुआ। और आगे चल दिया। अभी कुछ ही दूर गया था कि उसने देखा एक बन्दरिया अपने बच्चे को सुलाने का प्रयत्न कर रही थी। पर बच्चा था कि सो ही नहीं रहा था। कबूतर तुरन्त पहुँच गया बन्दरिया के पास और अपनी गुटर गूं-गुटर गूं की लोरी सुनाने लगा तथा अपने पंखों से हवा भी झलने लगा। बस फिर क्या था बालक तो पलक झपकते-झपकते तुरन्त सो गया।
यह देखकर प्रसन्नचित्त हुए बन्दरिया बोली- जो उलझे काम सुधारे वही सच्चा मित्र होता है।' अतः हे कबूतर ! आज से तुम मेरे मित्र हुए। यदि कभी मेरी आवश्यकता पड़े तो मुझे अवश्य याद करना।
__यह सुनकर कबूतर प्रफुल्लित हो गया और मस्त हवा में उड़ता हुआ कबूतरी के पास लौट आया। सारी बात उसने कबूतरी को सुना दी कि अब चिन्ता की कोई बात नहीं है। मैंने खण्डर के आस-पास ही दो